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________________ सकता है? जो जीवन है, वह कभी नहीं मरता। जो जीवन है, वह अमृत होगा। जो मर जाता है, वह जीवन नहीं है। अभी हम मुर्दे हैं। लेकिन हमारे भीतर अमृत बैठा हुआ है। और अगर हम मुर्दे की खोल के भीतर प्रविष्ट हो जाएं, तो हम अमृत को अनुभव कर सकेंगे और सच्चे जीवन को उपलब्ध कर सकेंगे। महावीर की ये शिक्षाएं किसी एक धर्म के लिए नहीं हैं। महावीर का यह मार्ग किसी एक व्यक्ति के लिए, किसी एक संप्रदाय के लिए, किसी घेरे के लिए नहीं है। इतने बड़े विराट पुरुष जिनका प्रेम अनंत तक पहुंचता हो, किसी के लिए नहीं होते, सबके लिए होते हैं। ईश्वर करे कि जैन जो समझते हैं कि महावीर हमारे हैं, महावीर का पिंड और पीछा छोड़ दें, ताकि वे सबके हो जाएं। अभी दस वर्षों बाद महावीर की पच्चीस सौवीं वर्षगांठ होगी। पच्चीस सौ वर्ष उस दिव्य जीवन को हुए पूरे होंगे। और तब मैं चाहता हूं कि सारी दुनिया अनुभव करे कि उनकी मूल शिक्षा क्या है। और सारी दुनिया अनुभव करे महावीर में, कि उसमें क्राइस्ट भी मौजूद हैं उनमें और कृष्ण भी मौजूद हैं और बुद्ध भी मौजूद हैं। उनकी ज्योति को सारी दुनिया अनुभव कर सके। दस वर्षों बाद सारी दुनिया को यह बोध हो सके कि महावीर सबकी संपत्ति हैं। यह बोध तभी होगा, जब उन पर संपत्ति होने का अधिकार उनके पीछे जो खड़े हैं, वे छोड़ दें। वे कहें कि महावीर उसके हैं जो उनका प्यासा होगा। और सच है यह, पानी उसका है जो प्यासा है। और कुआं उसका है जो उसमें पानी पीता है। वे नासमझ जो कुएं के बाहर बैठे हों और कुएं की बातें करते हों, कुआं उनका नहीं है। महावीर सबके हों, सबके हो सकें, उनकी शिक्षा सबके काम आ सके, और यह मनुष्य जो विकृत हो गया है, यह मनुष्य जो अस्वस्थ और विक्षिप्त और बीमार हो गया है, इस मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए वे आधार बन सकें, ऐसी कामना करता हूं। अंत में सबके भीतर बैठे हुए महावीर के लिए मैं अपने प्रणाम दूंगा और एक बात आपसे कहूंगा। अगर आपका प्रेम यह कहता हो कि महावीर की यह शिक्षा और उनके प्रेम और ज्ञान की शिक्षा दूर-दूर तक व्याप्त हो जाए, और ये समुद्र की लहरें उसे दूर किनारों तक ले जाएं, और ये हवाएं उसे अनंत तक पहुंचा दें, तो महावीर का एक छोटा सा वचन है, वह हम सारे लोग अपने हाथों को ऊपर उठा कर कहेंगे, ताकि वह वचन गूंजे और उसकी लहरें और तरंगें दूर तक पहुंच जाएं। और वह वचन उपयोगी है। सारी दुनिया से उसमें अमृत बरस सकता है। महावीर ने कहा है-महावीर ने कहा है : मित्ति मे सव्व भुए सू- मेरी सारे प्राणियों से मैत्री है। वैरं मज्झ न केवई-और मेरा किसी से कोई विरोध नहीं। ___ यह सत्य, यह विचार, उनके जीवन-आधार, उनकी साधना का मूल अनुभव है। मैं चाहूंगा, हम तीन बार हाथ ऊपर उठा कर इसे दोहराएंगे अपनी पूरी शक्ति से, ताकि यह समुद्र, ताकि ये हवाएं, ताकि यह आकाश गंजे उससे और यह विचार करोड़ों-करोड़ों लोगों को प्रभावित करे, उनको परिवर्तित करे। हम अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं। सारे लोग उठाएं, कोई आदमी इतनी कंजूसी न करे कि थोड़ी देर को दो हाथ न उठा सके और मैं तीन बार दोहराऊंगा, हम अपनी पूरी शक्ति से उस वचन को दोहराएंगे। मैं कहूंगा पहले, फिर आप उसे दोहराएंगे। 86
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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