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________________ तो मैं आपको यह कहूं कि अहिंसा ऊपर से मत थोपना, कागज के फूल ऊपर से मत चिपका लेना। अगर सच में चाहते हैं कि अहिंसा के फूल विकसित हों, तो समाधि को साधना, सत्य को साधना, स्वयं में प्रविष्ट होना । महावीर की मूल शिक्षा स्वयं - प्रवेश की है। महावीर की मूल शिक्षा आत्म-बोध और आत्म-ज्ञान की है। और जो अपने को जानता है, वह सब पा लेता है। सारे गुण उसमें बहे चले आते हैं। सारी श्रेष्ठताएं, सारी नैतिकताएं उसके पीछे छाया की तरह लग जाती हैं। जो स्वयं को जानता है, उसके जीवन में क्रांति अनायास हो जाती है। स्वयं को जानना एकमात्र चर्या में परिवर्तन, एकमात्र आचरण की क्रांति का मूल आधार है । ऐसे मैं सत्य को महावीर की मूल आधार, मूल साधना अनुभव करता हूं। और इस सत्य को जो पाना चाहे स्वयं में प्रविष्ट होकर, उसे कुछ बातें छोड़ देनी होंगी। पहली बात उसे यह छोड़ देनी होगी कि सत्य के संबंध में उसने जो धारणाएं बना ली हों, जो बिलीव्स बना लिए हों, जो विश्वास बना लिए हों, वे छोड़ देने होंगे। अज्ञान में सत्य के संबंध में जो भी धारणा होगी, वह असत्य होगी। सत्य को जिसे जानना है, उसे सारे विश्वास, सारी आस्थाएं छोड़ देनी होंगी और हिम्मत से शून्य कूदना होगा। क्योंकि अगर हम सत्य के संबंध में पहले से धारणाएं बना लें, तो हम सत्य को कभी नहीं जान सकेंगे। हम सत्य को तभी जान सकेंगे, जब हम सत्य के पास धारणा - शून्य होकर पहुंचें, खाली और रिक्त होकर पहुंचें, हमारे मन में कोई विचार न हो। हमारे मन में कोई धारणा, कोई कांसेप्ट न हो, कोई सिद्धांत न हो, कोई डॉक्ट्रिन न हो, कोई डॉग्मा, कोई संप्रदाय, कोई धर्म न हो। जब खाली और शून्य कोई अपनी आंखों को उठाता है, जब कोई मौन होकर अपनी आंखों को सत्य की तरफ उठाता है, तो उसे दर्शन होते हैं उसके, जो है । और जब तक कोई सोचता- विचारता है, तब तक उसके दर्शन नहीं होते, जो है । अगर प्रकाश को जानना है तो आंख खोलो, प्रकाश को सोचो मत। और अगर सत्य को जानना है, तो स्वयं में भीतर प्रविष्ट हो जाओ, सत्य के संबंध में विचार और धारणाएं मत बनाओ। धारणाएं और विचार बनाने वाले पंडित हो सकते हैं, प्रज्ञा को उपलब्ध नहीं होते । महावीर कहते हैं, सब छोड़ दो और निराधार हो जाओ । कल-परसों मैं एक कहानी कहता था । महावीर का शिष्य था गौतम । और महावीर के निर्वाण होने के समय तक गौतम को केवल -: न- ज्ञान उपलब्ध नहीं हुआ था । महावीर ने उससे कहा कि तूने सब छोड़ दिया है। तू मुझको भी छोड़ दे। तो तुझे केवल - ज्ञान उपलब्ध हो जाएगा। लेकिन महावीर जैसे प्यारे आदमी को छोड़ना क्या आसान है ! संसार छोड़ देना बहुत आसान है। इन अदभुत पुरुषों के चरण छोड़ने कैसे आसान है! लेकिन अदभुत हैं, अलौकिक हैं वे लोग जो अपने चरण छोड़ने को भी कहे हैं। महावीर ने कहा, तू मुझे छोड़ दे। एक ही बाधा रह गई है कि तू मुझमें अटका है। यह अटकन भी छोड़ दे और मुक्त हो जा ! सारी अटकन छोड़ दे, निराधार हो जा! जो निराधार हो जाता है, वह स्वयं के आधार को पा लेता है । जो बाहर किसी भी आधार 84
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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