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________________ मोहम्मद आधी रात को बोले कि मुझे ऐसा लगता है, मेरे घर में कोई परिग्रह किया गया है। उसकी पत्नी ने कहा, तुम्हें यह कैसे पता चला? मैंने पांच रुपये रोके हैं, लेकिन तुम्हें यह पता कैसे चला? मोहम्मद ने कहा, तू इतनी भयभीत मालूम हो रही है कि मुझे शक हुआ। इतना भयभीत आदमी अपरिग्रही नहीं हो सकता। सोचते हैं आप! मोहम्मद ने कहा, तू इतनी भयभीत है मेरे मरने से कि मैं यह समझ भी नहीं सकता कि तूने रुपये न बचाए होंगे। रुपये बांट दे, ताकि मैं निश्चित मर सकू; और यह नाम मेरे पीछे न रहे कि मोहम्मद के मरते वक्त पांच रुपये पास में थे। वे रुपये बांट दिए गए और मोहम्मद ने चादर ओढ़ ली और लोगों ने देखा, उनकी श्वास विलीन हो गई। मोहम्मद ने यह कहा कि तू इतनी भयभीत है, इसलिए मैं जान रहा हूं कि तूने जरूर कुछ रोका होगा। यह मैंने इसलिए कहा कि जिसके भीतर भय है, वह परिग्रही होगा। इसलिए मैं आपसे परिग्रह छोड़ने को क्या कहूं! परिग्रह छोड़ने के लिए पागल कहते होंगे। मैं आपसे भय छोड़ने को कहता हूं। भय जड़ है। परिग्रह कोई जड़ नहीं है। और भय तब छूटेगा, जब आपको दिखाई पड़े कि मेरे भीतर जो है, उसकी कोई मृत्यु नहीं है। क्योंकि मृत्यु एकमात्र भय है, और सब भय का मूल आधार है। ___जो व्यक्ति स्वयं में प्रविष्ट होता है, वह देखता है कि मैं अमृत हूं, और तलवारें मुझे छेद नहीं सकतीं, और अग्नि मुझे जला नहीं सकती, और पवन मुझे उड़ा नहीं सकता। कोई रास्ता नहीं है कि मुझे खंड-खंड और टुकड़े-टुकड़े किया जा सके। मैं अखंड और अमृत हूं। ऐसा जो बोध है, उसका परिणाम अपरिग्रह होता है। और जब कोई अपने भीतर प्रविष्ट होता है तो उसे दिखाई पड़ता है, यह आत्मा न तो स्त्री है, न पुरुष है। इस आत्मा का न तो कोई काम है, न कोई राग है। तब उसके जीवन से अब्रह्मचर्य गिर जाता है और ब्रह्मचर्य उपलब्ध होता है। मैं आपको यह कह रहा हूं कि जो सत्य को जानता है, अनिवार्यतया सत्य के अनुभव के बाद उसके जीवन में अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, ब्रह्मचर्य के फूल लग जाते हैं। जो सत्य के बीज बोता है, वह अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की फसल काटता है। ___ तो अगर अहिंसा पानी हो, प्रेम पाना हो, अपरिग्रह पाना हो, तो अपरिग्रह साधने में मत लग जाना, अहिंसा साधने में मत लग जाना। वैसी साधी हुई और कल्टीवेटेड अहिंसा झठी होती है। वह अभिनय है, वह एक्टिग है, वह असलियत नहीं है। इसलिए ऊपर से अहिंसा मालूम होगी और भीतर हिंसा बनी रहेगी। कल मुझे किसी ने कहा कि कोई साधु हैं, जो मेरा विरोध करते हैं। मेरी एक प्यारी बहन मेरे साथ थी। उसने कहा कि फिर वे साधु नहीं होंगे। क्योंकि साधु को किसी से क्या विरोध हो सकता है! और जिसको विरोध हो सकता है किसी से, वह साधु कैसे हो सकेगा! तो साधुता ऊपर होगी, विरोध भीतर है। असाधुता भीतर होगी। हम ऊपर कपड़े ओढ़ ले सकते हैं, उसमें क्या दिक्कत है? और इस जमीन पर सारे लोग कपड़े ओढ़े हुए हैं और उनके असली नंगे आदमियों का हमें पता नहीं चल रहा है। 83
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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