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________________ दिया, उससे एक हल हो जाएगा। लेकिन उससे सब हल नहीं हो जाएगा। असली हल तो तब होता है, जब भीतर अंतर्दृष्टि जागती है और भीतर एक बोध, एक विवेक जाग्रत होता है। तो महावीर ने विचार नहीं सिखाया, महावीर ने विवेक सिखाया। और जो आपसे कहता हो कि महावीर ने विचार सिखाया, वह शत-प्रतिशत असत्य बात कहता होगा। महावीर ने अहिंसा का विचार नहीं सिखाया, अपरिग्रह का विचार नहीं सिखाया, वह अंतर्दृष्टि सिखाई, जिसके आने पर अहिंसा आ जाती है, अपरिग्रह आ जाता है। ___ जिस व्यक्ति को यह दिखने लगे कि मैं शरीर नहीं हूं, वह परिग्रही कैसे होगा? जिस व्यक्ति को यह दिखने लगे कि मैं शरीर नहीं हूं, वह परिग्रही कैसे होगा? लेकिन मैं आपको कहूं कि वह तथाकथित अपरिग्रही भी नहीं होगा, जो आपको दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि जिसको यह दिखाई पड़ने लगे कि मैं शरीर नहीं हूं, वह चीजें इकट्ठी करने का मोह भी उसमें नहीं रह जाएगा, चीजें छोड़ कर भाग जाने का प्रश्न भी उसे नहीं उठता। वह अस्पर्श को उपलब्ध हो जाएगा। चीजों के बीच हो तो उसे चीजें छुएंगी नहीं। चीजें उसके पास न हों तो चीजों का स्मरण उसे नहीं होगा। वह अस्पर्श को उपलब्ध हो जाएगा। __ एक साधु हुआ। एक बादशाह ने उसे बहुत प्रेम किया और अपने घर मेहमान बना लिया। वह साधु उसके घर मेहमान हो गया। मेहमान होने के पहले एक दरख्त के नीचे पड़ा था, नंगा फकीर था। मेहमान होने के बाद महल की सारी राज्य-सुविधा उसे उपलब्ध हुई। उस रात वह बहुमूल्य पलंग पर सोया। राजा को अपने बिस्तर पर सोते वक्त संदेह मन में हुआ कि यह तो अजीब बात है, यह आदमी साधु नहीं मालूम होता। भीख मांगता था दरवाजे पर, दरख्त के नीचे नंगा पड़ा रहता था; हम इसे आदर दिए, हमने कहा, महल चलो, इसने एक दफे इनकार भी नहीं किया कि नहीं चलते! अगर साधु होता तो इनकार करता, ऐसा उस राजा ने सोचा। साधु होता वह कहता, हमको क्या मतलब राजमहलों से! लेकिन जो कहे कि हमको क्या मतलब राजमहलों से, उसका अभी बहुत मतलब बाकी है। राजा ने कहा, यह बोला नहीं कुछ भी! हमने कहा चलो, यह चला आया! जरूर यह साधु-वाधु नहीं है, यह धोखा है। इसका कोई अपरिग्रह नहीं है। बिस्तर पर सुलाया, सो गया! अच्छा खाना खिलाया, खा लिया! सुबह होते ही राजा ने कहा, मुझे एक संदेह होता है। वह साधु हंसने लगा। उसने कहा कि तुम्हें अब होता है, हमें तभी हो गया था, जब तुमने कहा था, ऊपर चलो। राजा बोला, मतलब? वह बोला कि हम उसी वक्त देख लिए थे, तुम्हारी श्रद्धा विलीन हो गई, सब खतम हो गया। हम तुमसे कहते कि हम फकीर हैं, हम कहां राजमहल में जाएंगे, हमने लात मार दी, तो तुम खुश होते और हमारे पैर पकड़ते और हमारे चरणों में सिर रखते। क्यों? क्योंकि तुम्हारी जो वासना है. उसे जो छोडता हआ मालम पडे. वह तम्हें आदर योग्य मालम होता है। स्मरण रखना, जब भी आप किसी का आदर करते हो, वह उसका आदर कम है, आपकी वासना का सबूत ज्यादा है। अगर मैं सारा धन छोड़ कर चला जाऊं और आप मेरे पैर पड़ो, तो मैं समझूगा धन-लोलुप हो। क्योंकि मेरे पैर क्यों पड़ोगे? धन-लोलुपता आपकी मेरे पैर पड़ने को कहेगी, इसने सारा धन छोड़ दिया और आप धन-लोलुप हो! हद्द त्याग किया है,
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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