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________________ और स्मरण रखें, एक बार में एक ही सीढ़ी चढ़नी होती है, बहुत सीढ़ियां कोई नहीं चढ़ता। एक सीढ़ी आप चढ़ जाएं, दूसरी सीढ़ी आपके सामने आ जाती है। अगर विवेक की सीढ़ी कोई चढ़ जाए, तो अपने आप दूसरी सीढ़ियां उसके सामने उदघाटित होती चली जाती हैं। मनुष्य को सीखने जैसा विवेक है, और कुछ भी सीखने जैसा नहीं है। लेकिन हम विवेक नहीं सीखते, हम विचार सीख लेते हैं! विवेक और विचार में भेद है । हम विवेक तो नहीं सीखते महावीर से, महावीर के विचार सीख लेते हैं! महावीर के विचार पर खड़े हुए शास्त्र हैं, उनको सीख लेते हैं! महावीर के विचार पर चलते हुए प्रवचन और पांडित्य की बातें हैं, उनको सीख लेते हैं! मैं आपको कहूं, महावीर के विचार को न सीखें, महावीर के विवेक को सीखें। अगर महावीर को पाना है तो महावीर के विवेक को सीखें। और अगर महावीर की बातें सीख लीं, तो महावीर को तो नहीं पा सकेंगे। उन बातों से महावीर को नहीं पा सकेंगे। महावीर के विचार का संग्रह न करें, महावीर के विवेक का जागरण करें अपने भीतर । और दुनिया के समस्त सदपुरुषों के दो ही जीवन के हिस्से हैं- उनका विचार और उनका विवेक । जो लोग उनके विचार को पकड़ते हैं, वे पंडित होकर समाप्त हो जाते हैं। जो उनके विवेक को पकड़ते हैं, वे प्रज्ञा और मोक्ष को उपलब्ध होते हैं । तो आज की सुबह, महावीर के विवेक को, महावीर के विचार को नहीं । महावीर जो भी कहते हैं, वह महत्वपूर्ण नहीं है। महावीर जिस स्थान से कहते हैं, उस स्थान पर कैसे पहुंचें, यह महत्वपूर्ण है। एक साधु हुआ। उससे किसी व्यक्ति ने जाकर पूछा। कोई उसकी उलझन थी । उसने कहा, यह उलझन मेरी हल कर दें। साधु ने कहा, यह मैं तुम्हारी उलझन हल कर दूंगा, तो क्या तुम सोचते हो कि कल तुम्हारी दूसरी उलझन खड़ी नहीं हो जाएगी ? वह बोला कि कैसे सोच सकता हूं कि नहीं खड़ी हो जाएगी ! जीवन तो उलझन है । साधु ने कहा, कल तुम फिर आओगे, फिर मैंने तुम्हारी उलझन ठीक कर दी। फिर तीसरे दिन क्या हो ? फिर आज मैं हूं, कल मैं समाप्त हो जाऊंगा, तो तुम्हारी उलझन कौन समाप्त करेगा? तो उस साधु ने कहा, अच्छा हो कि तुम उलझन का समाधान मुझसे मत मांगो। तुम मुझसे वह अंतर्दृष्टि मांगो, जिससे सारी उलझनें सुलझाने की स्वयं क्षमता मिल जाती है। उस साधु ने कहा, अच्छा हो तुम मुझसे समाधान मत मांगो, तुम मुझसे वह रास्ता पूछो, जिससे कि स्वयं समाधान मिल जाता है और वह अंतर्दृष्टि मिल जाती है, जिससे सारी उलझनें सुलझ जाती हैं। एक अंधा आदमी आकर मुझसे पूछे कि दरवाजा कहां है इस हाल के बाहर निकलने का ? मैं उसे बता दूंगा। फिर कल यहां आएगा, फिर पूछेगा कि दरवाजा कहां है? दूसरे मकान में जाएगा, फिर पूछेगा कि दरवाजा कहां है? जिस मकान में भी जाएगा, वहीं पूछेगा कि दरवाजा कहां है? अगर मेरी अनुकंपा उस पर पूरी हो तो मुझे उसे दरवाजा नहीं बताना चाहिए, मुझे उसे आंख ठीक करने का उपाय बताना चाहिए। दरवाजा बताने से क्या फायदा होगा? दरवाजा बताना विचार देना है और आंख ठीक करना विवेक देना है। दरवाजा बताना एक विचार दे 28
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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