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________________ शायद उन्हें पता भी नहीं था। लेकिन उनके मंदिर में वे पत्थर रखे थे और वे उनकी पूजा कर लेते थे। फिर वह संन्यासी और भीतर प्रविष्ट हुआ और देश के केंद्र पर राजधानी में पहुंचा। वहां जरूर एक आदमी अग्नि को जलाना जानता था । वह उस देश का महापुरोहित था, धर्मगुरु था । और उसकी, उस आदमी की लोग पूजा करते थे, क्योंकि वह चमत्कार था कि वह आदमी अग्नि जला लेता था। वर्ष में एक बार वह अग्नि जलाता था। सारे देश के करोड़ों लोग इकट्ठे होते थे और पूजा करते थे। जब वह संन्यासी राजधानी में पहुंचा तो वैसा ही अग्नि का दिवस मनाया जा रहा था। करोड़ों लोग इकट्ठे थे। और उस पुजारी की पूजा चलती थी, क्योंकि वह अग्नि जला सकता था । यह महाशक्ति का कार्य था । यह परमात्मा का विशेष आदमी था जिसको यह अधिकार मिला था। कोई और अग्नि जलाना नहीं जानता था। उसने भीड़ में चिल्ला कर उस संन्यासी ने कहा, यह क्या पागलपन कर रहे हो ! अग्नि कोई भी जला सकता है। मैं तुम्हें अग्नि का जलाना बता सकता हूं। यह क्या विक्षिप्तता फैली हुई है! पुजारियों ने उस संन्यासी को पकड़ लिया और लोगों ने कहा, यह हमारे धर्म का शत्रु है। यह हमारे धर्म का दुश्मन है। यह हमारे धर्म का अनादर करता है । यह अश्रद्धा फैलाता है। और उन्होंने उस संन्यासी को सूली पर लटका दिया । और वे प्रसन्न हुए, क्योंकि उन्होंने एक अधार्मिक नास्तिक की हत्या कर दी थी और उसे पृथ्वी से मुक्त कर दिया था। इस कहानी से मैं क्यों शुरू करना चाहता हूं ? मनुष्य की इस पृथ्वी पर धर्म की वही गति हो गई है जो अग्नि की उस देश में हो गई थी। सब तरफ धार्मिक लोग हैं जैसे उस देश में अग्नि-पूजक थे। मंदिर हैं, मस्जिद हैं, शिवालय हैं, शास्त्र हैं, मूर्तियां हैं, चित्र हैं, पूजा है, प्रार्थना है, अर्चना है। लेकिन जैसे उस देश में अग्नि नहीं थी और लोग अंधकार में जीते थे, ऐसे ही पृथ्वी पर धर्म नहीं है और लोग अंधकार में जीते हैं। हां, कभी-कभी हम पूजा कर लेते हैं। और कभी-कभी स्मरण कर लेते हैं उन लोगों का जिनके जीवन में धर्म की ज्योति जली थी। जैसे आज ही हम यहां इकट्ठे हो गए हैं एक ऐसे ही व्यक्ति के स्मरण के लिए, महावीर के स्मरण के लिए। कभी हम कृष्ण के स्मरण के लिए इकट्ठे होते हैं, कभी राम के, कभी क्राइस्ट के, कभी मोहम्मद के। और हम उन लोगों की गुण-गाथाएं कर लेते हैं जो अग्नि जलाना जानते थे— जीवन की अग्नि, प्रेम की अग्नि, परमात्मा की अग्नि । उनकी पूजा करते हैं। उनका स्मरण करते हैं। लेकिन हम यह भूल ही गए हैं कि यह अग्नि तो हर कोई जला सकता है। यह तो प्रत्येक आदमी का अधिकार है कि वह प्रभु की ज्योति को उपलब्ध हो जाए। लेकिन अगर कोई हमसे यह कहेगा तो हम कहेंगे, हमारे महापुरुषों का अपमान म करो, हमारे धर्म का विरोध मत करो, हम धर्म के पूजक हैं। ऐसी अश्रद्धा की बातें मत फैलाओ। जो उस संन्यासी के साथ हुआ था, वह हमेशा संन्यासी के साथ होता रहा है । इसीलिए तो हम जीसस को सूली पर लटका देते हैं। क्योंकि वह उन लोगों का विरोध करता है, जो केवल पूजा कर रहे हैं। पूजा करने वाले लोग धर्म के शत्रु हैं। जीना ! धर्म को जीना पड़ता है, पूजा नहीं करनी पड़ती। लेकिन जीसस अगर लोगों से कहता है कि तुम पूजा करने वाले लोग पागल हो, धर्म को जीओ। अग्नि को जलाओ और घर के अंधेरे को मिटाओ। न कि 131
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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