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________________ घटना से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा। एक संन्यासी किसी अजनबी देश - से गुजरता था। वह देश अग्निपूजकों का देश था। संन्यासी जब देश के भीतर प्रविष्ट हुआ तो पहले ही उसे जो गांव मिले वह देख कर दंग रह गया- उन गांवों में रात अंधेरा था। उन गांवों में घरों में चूल्हे नहीं जलते थे। उन गांवों के लोग आग जलाना भी नहीं जानते थे। वह तो चकित रह गया। उसने सुना था, वह अग्निपूजकों का देश है। वहां अग्नि को लोग पूजते जरूर थे, लेकिन अग्नि को जलाना नहीं जानते थे। उसने लोगों से बात की। उन लोगों ने कहा, अग्नि अब नहीं जलती, वह सतयुग की बात है, पहले जलती थी। वे दिन बीत गए। यह कलियुग है, अब अग्नि जलने का कोई उपाय नहीं है। और फिर अग्नि सभी तो नहीं जला सकते! कोई महापुरुष, कोई तीर्थंकर, कोई ईश्वरपुत्र, कोई अवतार अग्नि को जलाने में समर्थ होता है। हम साधारणजन अग्नि को कैसे जला सकते हैं! हम तो सिर्फ अग्नि की पूजा करते हैं। वह संन्यासी बहुत हैरान हुआ, अग्नि तो कोई भी जला सकता है। और जब उसने यह कहा कि अग्नि तो कोई भी जला सकता है, तो वे गांव के लोग बहत नाराज हो गए। उन्होंने कहा, तुम हमारे महापुरुषों का अपमान करते हो! यह सिर्फ अलौकिक महापुरुषों के लिए संभव है कि वे आग जला सकें। हम सिर्फ अग्नि की पूजा कर सकते हैं। और अग्नि की पूजा करने को भी वे अग्नि नहीं जला सकते थे। उनके पास अग्नि के संबंध में लिखे हुए शास्त्र थे। मंदिर में रख कर उनकी ही वे पूजा करते थे। फिर वह संन्यासी और उस देश के भीतर प्रविष्ट हुआ। दूसरे गांव आए। वहां भी अंधकार था, वहां भी अग्नि जलाना कोई भी नहीं जानता था। लेकिन उनके पास अग्नि के चित्र थे। उन चित्रों की वे पूजा करते थे। वह संन्यासी और भीतर प्रविष्ट हुआ, वह उन गांवों में पहुंचा जो देश के और भीतरी हिस्सों में थे, वहां भी अग्नि को जलाना कोई नहीं जानता था। लेकिन उनके पास अग्नि को जलाने के उपकरण थे, उनके पास पत्थर थे, जिनके घर्षण से अग्नि पैदा हो जाए। लेकिन वे कभी उन पत्थरों का घर्षण नहीं करते थे। शायद भूल गए थे। 130
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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