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________________ अग्नि के चित्रों की और शास्त्रों की पूजा करो। अग्नि तो उपयोग करने के लिए है। धर्म भी उपयोग करने के लिए है। तो फिर पुजारियों ने जीसस को सूली पर लटका दिया। और सुकरात ने-यूनान में लोगों से कहा सुकरात ने यही कि धर्म तो जीने के लिए है। सत्य तो जीने के लिए है। उसे जीओ! तो एथेंस की अदालत ने उसे जहर पीने की आज्ञा दे दी। कि यह लोगों को बिगाड़ रहा है। लोगों की श्रद्धा को खंडित कर रहा है। और मंसूर ने जब कहा, तो यही मंसूर के साथ हुआ। और अभी हम गांधी की हत्या करके निपटे भी नहीं हैं, अभी उसकी छाया हम पर मौजूद है। बड़े आश्चर्य की बात है कि जब महापुरुष जिंदा होते हैं, तो हम पत्थर मारते हैं, अपमान करते हैं, गोली चलाते हैं, जहर पिलाते हैं। और जब महापुरुष मर जाते हैं और हजारों वर्ष बीत जाते हैं, तो हम उनकी पूजा करते हैं। शायद यह पूजा पश्चात्ताप के लिए है। शायद हमने उनके जीवित उनके साथ जो दुर्व्यवहार किया है उसके लिए प्रायश्चित्त कर लेना चाहते हैं। फिर हजारों साल तक प्रायश्चित्त चलता है। गांधी की पूजा चलेगी, मूर्तियां बनेंगी। महावीर की पूजा चल रही है, मूर्तियां बन रही हैं, मंदिर बन रहे हैं, स्मरण किया जा रहा है। महावीर के साथ कोई बहत अच्छा व्यवहार हमने किया हो. ऐसा स्मरण नहीं आता। महावीर को पत्थर मारे गए। गांव से निकाल कर बाहर किया गया। जंगली कुत्ते महावीर र छोड़े गए। महावीर के कानों में लोहे की कीलियां ठोक दी गईं। महावीर के साथ यह हमने व्यवहार किया, जब महावीर जिंदा हैं। और जब महावीर मर जाते हैं, तब हम उनकी मूर्ति बनाते हैं, उनके चरणों में सिर रखते हैं। आदमी पागल मालूम होता है। पूजा प्रायश्चित्त है। शायद मर जाने पर खयाल आता है, बीत जाने पर खयाल आता है। अरे, यह क्या हुआ! और फिर और भी कुछ कारण हैं शायद। शायद जिंदा तीर्थंकर, जिंदा पैगंबर, जिंदा विचारक, जिंदा सुकरात, जिंदा महावीर, जिंदा बुद्ध हमारे झेलने के बाहर होते हैं, अनबियरेबल होते हैं। वे जिस सत्य को दिखाते हैं, उसे देख कर हमारे सारे असत्य प्राण कंप जाते हैं। लेकिन जब मर जाता है कोई महापुरुष, तो उसे हम अपनी मट्टी में बंद कर लेते हैं। फिर हम अपने मन के हिसाब से उसकी व्याख्या कर लेते हैं। फिर हम उसके कोनों को झाड़ देते हैं। फिर हम उसकी तीखी बातों को मिटा देते हैं। फिर हम उसकी जिंदगी में जो तीर थे, उनको समाप्त कर देते हैं। हम उसे चिकना, साफ-सुथरा, अपने काम का बना लेते हैं। फिर हम उसकी पूजा करते हैं। इसलिए मुर्दा पैगंबरों की पूजा होती है, जिंदा पैगंबरों को पत्थर मारे जाते हैं। और जब तक पृथ्वी पर यह होता रहेगा तब तक पृथ्वी पर धर्म का कोई अवतरण संभव नहीं है। जिस दिन जीवित व्यक्तित्व का समादर उत्पन्न होगा, मृत व्यक्तित्व का नहीं, उस दिन शायद पृथ्वी पर धर्म उतर सकता है। मुर्दा, मृत, अतीत महापुरुष धर्म को कैसे ला सकते हैं! लेकिन हम उनकी ही पूजा किए चले जाते हैं। और उनकी पूजा करने की हमारी तरकीब यह है कि हम पहले उनके तीखे कोनों को झड़ा देते हैं। जहां से हमें चोट लग सकती है, वे हम मिटा देते हैं। हम अपने मतलब की व्याख्या कर लेते हैं। और फिर जब व्याख्या हमारे मतलब की हो जाती है तब हम निश्चित हो जाते हैं। 132
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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