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________________ __ लेकिन नहीं, हम बहुत होशियार हैं! आदमी की जात बहुत चालाक है। वह इतनी होशियारी से काम करती है कि बजाए इसके कि महापुरुष को, महावीर को, या किसी और को सामने रख कर अपने और उनके बीच तुलना कर सके! यह नहीं, अपने को तो भुला देती है उनकी प्रशंसा में, जय-जयकार में, और फिर उन पर वे गुण आरोपित कर लेती है, जो उनके गुण नहीं होते, बल्कि हमारे भीतर के कुछ कारण होते हैं। जैसे, जो आदमी भोजन करने का अति लोभी होगा, जो आदमी भोजन में बहुत लोलुप होगा, ग्रीडी होगा, वह आदमी हमेशा उपवास करने वाले आदमी का आदर करेगा। जब कोई आदमी उपवास करने वाले व्यक्ति का आदर करता हो तो समझ लेना कि यह उपवास करने वाले व्यक्ति के आदर का इससे बहुत संबंध नहीं है; इससे बहुत संबंध उस आदमी का है, जो भोजन करने में बहुत लोभी और लालची है। उसके भोजन करने की जो अति वासना है, उसके कारण उपवासी आदमी उसको आदरणीय मालूम पड़ता है। जो आदमी बहुत कामुक है, कामी है, उस आदमी को ब्रह्मचारी का जीवन बहुत आदृत मालूम पड़ेगा! जो आदमी हिंसक है, जो आदमी अत्यंत दुष्ट और क्रूर और कठोर है, उस आदमी को अहिंसक का जीवन बहुत प्रभावित करता हुआ मालूम पड़ेगा! यह बड़ी अजीब बात है। यह बहुत अजीब बात है। जो आदमी धन का बहुत पागल लोभी है, उसको त्यागी का जीवन बहुत प्रभावित करता हुआ मालूम पड़ेगा! लेकिन यह मनोवैज्ञानिक है। इसके पीछे कारण हैं। जो हम नहीं कर सकते, जब कोई उसे करता है, तो हम चकित हो जाते हैं। जो मैं नहीं कर सकता, जब कोई और करता है, तो मैं चकित हो जाऊं, यह स्वाभाविक है।। ___ महावीर से जो लोग चकित हो गए हैं, वे महावीर से ठीक विपरीत लोग हैं। बुद्ध से जो आदमी चकित हो गया है, वह बुद्ध से ठीक विपरीत आदमी है। क्राइस्ट से जो आदमी प्रभावित हो गया है, वह क्राइस्ट से ठीक विपरीत आदमी है। इसीलिए तो महापुरुष एक तरफ, अनुयायी बिलकुल उलटे-बिलकुल उलटे सिद्ध होते हैं। थोड़ा सोचें। महावीर तो कहते हैं अपरिग्रह, महावीर तो सारा स्वामित्व छोड़ देते हैं। नहीं मानते कि मेरा कोई धन है। लेकिन महावीर के अनुयायियों ने भारत में जितना धन इकट्ठा किया, किसी और ने इकट्ठा किया? यह तो अजीब बात है! लेकिन यह अजीब नहीं है, बहुत साइकोलाजिकल है। बहत कछ कारण हैं इसके पीछे। इसके पीछे महावीर की कोई भल नहीं है। महावीर के सर्व-धन-त्याग के कारण, जितने लोग धन के प्रति अति लोभी थे, वे सब महावीर के प्रति आकर्षित हो गए। वे जो नहीं कर सकते थे, महावीर वही कर रहे हैं। जीसस क्राइस्ट कहते हैं, प्रेम। सबको प्रेम। शत्रु को भी प्रेम। जो तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे, दूसरा गाल भी उसके सामने कर देना। और जो तुम्हारा कोट छीने, उसको कमीज भी दे देना, कहीं उसे कमीज की भी जरूरत न हो। जो आदमी तुम्हें एक मील तक कहे मेरा बोझा ढोकर ले चलो, दो मील तक ढोकर ले जाना। जीसस क्राइस्ट तो यह कहते हैं। लेकिन क्रिश्चियंस ने जितने जनता के गालों पर चांटे मारे हैं, और आदमियत के साथ जितनी हत्या और हिंसा की, धर्म के नाम पर जितने युद्ध लड़े, जितने निहत्थे लोगों को समाप्त किया, जितने लोगों को आग में जलाया-लाखों की संख्या में! बड़ी हैरानी की बात है। 115
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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