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________________ महावीर : परिचय और वाणी है कि हम उसमे दुवारा प्रवेश नही कर पाते । लेकिन इस तरह की पद्धतियाँ और व्यवस्थाएँ है कि एक ही स्वप्न मे वार-बार जाया जा सके । यदि इनके सहारे एक ही स्वप्न मे आपने कई बार प्रवेश किया तो आपको स्वप्न उतना ही मालूम होगा जितना आपका यह मकान । मेरे कहने का प्रयोजन यह है कि अगर 'साक्षी' जग जाय तो कल उसने जो जगत् वनाया था, वह विदा हो जाता है और एक विलकुल नया वस्तुपरक सत्य सामने आता है । इस संसार के लिए महावीर 'माया' शब्द का प्रयोग नही करते, क्योकि 'माया' के प्रयोग से लगता है कि यह झूठ है । वे कहते है कि वह भी सत्य है, यह भी सत्य है । लेकिन दोनो सत्यो के बीच हमने बहुत से झूठ गढ रखे है जो विदा हो जाने चाहिए । पदार्थ भी अपने मे सत्य है और परमात्मा भी । वस्तुत दोनो एक ही सत्य के दो छोर है । यदि शकर 'माया' का प्रयोग करते है तो इसमे भी कोई हर्ज नही । हम स्वप्न के जगत् मे जीते है और उस व्यक्ति के समान है जो दिन भर रुपए गिनता रहता है, ढेर लगाता जाता है और अन्त मे उन्हें अपनी तिजोरी मे बन्द कर देता है । रोज गिनता है और रोज वन्द कर देता है । ऐसा व्यक्ति रुपयों की गिनती मे जीता है । और बडे मजे की बात है कि रुपयो मे क्या है जिनकी गिनती मे कोई जिए ? कल सरकार बदल जाय और कहे कि पुराने सिक्के खत्म हो गए तो उस आदमी का सारा मनोलोक बिलकुल धराशायी हो जायगा । हम उस आदमी से भिन्न नही । हमारा भी अपना स्वप्निल जगत् है और हमारे भी ऐसे ही सिक्के हैपरिवार के सिक्के, प्रेम और मित्रता के सिक्के, जो कल सुबह नियम बदल जाने से बदल जायँगे । दूसरे प्रन्न के उत्तर मे इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि पूर्णता की उपलब्धि मे अभिव्यक्ति के साधन सम्मिलित नही है | अभिव्यक्ति की पूर्णता उपलब्धि की पूर्णता से बिलकुल अलग है | असल मे पूर्णता भी एक नही है, अनन्त पूर्णताएँ है । यदि कोई एक दिशा मे पूर्ण हो जाता है तो इसका यह अर्थ नही कि वह सब दिशाओ मे पूर्ण हो जाय । वहुत आयाम है पूर्णता के । एक व्यक्ति पुण्य मे पूर्ण हो जाय तो फिर वह पाप की पूर्णता मे पूर्ण नही हो सकता । पाप की भी अपनी पूर्णता है । सिर्फ परमात्मा ही सब दिशाओ से पूर्ण है क्योकि वह कोई व्यक्ति नही है । और खयाल रहे, अनुभूति की एक दिशा है, अभिव्यक्ति की बिलकुल दूसरी । अनुभूति मे जाना पडता है भीतर और अभिव्यक्ति में आना पडता है बाहर | अनुभूति मे छोडना पडता है सबको और हो जाना पडता है विलकुल 'स्व' – सब छोडकर एक विन्दु | अभिव्यक्ति मे फैलना पडता है, सबको जोडना पड़ता है । अभिव्यक्ति मे 'दूसरा ' महत्त्वपूर्ण है, अनुभूति मे 'स्वयं' ही महत्त्वपूर्ण हे । जानना मौन मे है और वताना वाणी मे । तो जो जानेगा उसको मोन होना पडेगा और जब वह वताने जायगा तो फिर उसे शब्द
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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