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________________ महावीर परिचय और वाणी का सामना करनी पड़ेगी। इस जबरी नहा पिजा अभियक्ति कर रहा हो वह जानना भी हो। हा मरता है उसको अनुभूनि उधार लो हुइ हा । एसे हो आदमी का मैं पडित रहता है। पडितपास अभिव्यक्ति है, अन मति नहा। एस भी लाग है जिन पास अनुभूति है अभिव्यक्ति नहा । नानी और तीयवर म यही फक है। तीथर नानी ही नहीं अमि पक्ति गर भी है और पानी केवल अनुमति-सम्पन व्यक्ति है। मिप अभि पक्ति नहा है उसके पास । ___ अनुभूति को पूणता महावीर या पिरले जम म मिली रेविन अभिव्यक्ति की पूर्णता के लिए उ हैं साधना करनी पडी। और मैं कहता हूँ कि जनमति को पूर्णता उननी पटिन नहा है जितनी अभिव्यक्ति की पूर्णता टिन है। अनुभूति में में मरना है, रेविन अभियक्ति मदमरा भी सम्मिलित हा जाता हैमर या जाना-सगाना दूमरे तक पहुचना मी जम्गेहा जाता है। पाटिनाई में वह भय धारण भी होते हैं जस दूमरे को मापा, दूसरे के अनुभव, दूसरे का "यक्तिद इत्यादि । मष्टि म बरोडा तर व व्यक्तित्व है परोड पराड यानिया म बेटा हुमा प्राण है। उन सब पर प्रतिपनि हा सप, उन मब तक पयर पहुच सब पत्थर भी सुन ले और दया मीएमो साधना बहुत बडी बात है। इसलिए मेपर पान ता बहा रोगा का उपध हाता है दुभा है लेकिन तीयं करा यो सम्पा बहुन पम है। ध्यान रहे कि मनुष्य की शक्ति की अपनी सीमाए है। अगर कोई व्यक्ति मगीत म यस्त बाल हा जाय तो उमपे पान रित हो जायेंगे रबिन आय मदहा जायगी म्पाक्षीण हो जायगा । पर व्यक्ति आरगिलामा म एक्लम मिडजायगा। पाक्ति सामिन है अनुभूतियां आत हैं। यल परमामा म सानहा जान म ही हम गमन म पूर्ण हो जात है। लेकिन एक लिया म भोप हा नाय ना यह उस द्वार पर राहा हो जाता है जहाँ मे परमा मा में प्रवाहाना सनम है। पूणा विमी भी दिलास क्यों न आए, वह परमा मा मे द्वार पर पर ही देता है। अगर यह गयार में हाशि पूर्णता अनल है तो हम समा गगरि सयममा गया माया साना है। इसका मतलब यह नहा विगवा आपका यागिरि ५ पट टायर पा मरम्मा कर देगा और मिमी या टी० बी० हा जाप ता उसारा दवा भी कर देगा। -किन महायार या पाउनयागमवगया युछ एमा ही मतएव समा लिया है। रायगया है जा पूर्णता पाएर ाि पो पार और दगम मय हा पाय ! महावार ना मान या दिशा म पण नर गवाहा पर मय नहा किये यासा पोमारो माना जानन । विप्य म पाहाणा, पर मा गान या मापा यह नोव है याशिव नान या ना "पहा है। नवरा पा मवर व पहा ।। राय यह है ITAL समता म जीना HIT-TI F उस माई द्वारा मि Pाना नही
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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