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________________ महावीर परिचय और याणी ४७ प्रयेक क्रिया मे ध्यान उपस्थित हा जाय तो जागरण गुरू हो गया। महावीर जिसे विवेक कहते हैं, उसका यही अय है। रिया मे ध्यान की उपस्थिति का नाम विवेक है और निया मे ध्यान की सनपस्थिति का नाम प्रमाद । एक वार प्रसनचद्र नामक एक व्यक्ति न महावीर से दी नारी । दीक्षा के बाद वह तपश्चया म लोन हा गया । बुट दिना के बाद उसन सुना कि जिन रोगो पर उस न विश्वाम दिया था, जिनकी दम रेप म अपन बच्चे और अपनी सम्पत्ति छोडी थी व विश्वासघात वरन पर तुर हैं और उमसरी सम्पत्ति हडपन को साजिश पर रह है। यह सुनत ही उसका हाथ तलवार पर चरा गया। लेकिन उसके पारा अब तलवार न थी। उसका ऐसा करना इस बात का प्रमाण है कि वह क्षण भर के लिए बहोगा गया था । मोवन उस बेसुध कर दिया था । जब उसे महसूस हुआ वि उसके पास कोई तत्वार नही तर वह उसी क्षण जाग उठा, उमवे सपन सण्ड-खण्ड हो गए और उसने वहा 'मैं यह क्या कर रहा हूँ? मैं व प्रमनपद्र नहीं हूँ जो कभी तरवार उठान का आदी था। महावीर ने एस मक्न सम्राट से कहा था जिस समय प्रसमचन्द्र का हाथ तलवार पर गया था उस समय यदि उसकी देह छूट जाती तो वह सातवें नरप में गिरता । लेकिन जिस क्षण उसकी निद्रा ट्टी और उस असलियत का नान हुआ वह उसी क्षण श्रेप्टतम स्वग का हकदार हो गया । कहने की जरूरत नहीं कि सोया हुआ आदमी नरप म होता है और जो जागता है वह स्वग का हबदार होता है । अत' जागन को चंप्टा हम मतत परनी पडेगा। इसम नई जम भी एग सक्त हैं और जागरण एर क्षण म भी हो सकता है। यह ता प्यास नीर सकल्प की तीव्रता पर निभर होगा। __ महावीर न अपन पिछले जमो म कुछ नापा या ता वह था विवव उहान माधा था जागरण । और यह जागरण जितना गहरा हाता चला जाता है हम उतना ही मुक्त होन चल जात है पुण्य म जीन रगत हैं शात और आनति हो जाते हैं । जिस दिन पूण गागरण की घटना घट जाती है यो दिन विस्पोट हो जाता है चेतना कण-कण जाग्रत हो उन है पाने योग से निदा विलीन हो जाती है । एमी पूर्णतया जागी हुई चेतना ही मुक्त विना है। मूर्छ यांधती है, मूच्छिन पाप मी बापता है, मूच्छिन पुण्य भी बांधता है । मून्छित बसयम भी बांयता है मच्छिन सयम भी बाँचना है। इसलिए गममपि नगर पाई असयम का सपम बनाने म लग गया हातो मग तुम भी न होगा माल उस पातर की चेतना ज्या पो त्या-~-च्छिन हो-होतो यद्यपि उसी प्रिया पर जाती है। सलिए मैं पहला हू-पाप यह है जो जग व्यक्ति नहीं पर माता और पुम्प यह है जा नाग हुए व्यक्ति का परना ही पहता है । साया हुआ आगमा पुष्प य स पर गाता है ? माग हुए व्यक्ति स पाप
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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