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________________ ३२२ महावीर : परिचय और वाणी है-स्वय मे उतरो और स्वयं का अध्ययन करो। पूरा जगत्--आत्मा का जगत्-- पूरा भीतर है। उसे जानने चलो। लेकिन इसके लिए रुख बदलना पड़ेगा। वस्तु के अध्ययन को छोडो, अध्ययन करनेवाले का अध्ययन करो। शास्त्र से जो मिलता है, वह सत्य नही हो सकता । स्वय से जो मिलता है, वही सत्य होता है। वह स्वय से मिला सत्य शास्त्र मे लिखा जाता है, लेकिन शास्त्र से जो मिलता है, वह स्वय का नही होता । शास्त्र कोई और लिखता है। वह किसी और की खवर है जो आकाग मे उड़ा है, जिसने प्रकाग के दर्शन किए हैं, जिसने सागर मे डुबकी लगाई है। इसका मतलब यह नहीं कि महावीर शास्त्रो के अध्ययन को इनकार करते हैं । वे केवल इतना ही कहते है कि ऐसा अव्ययन स्वाध्याय नहीं है । यदि यह बात खयाल मे रखी जाय तो शास्त्राध्ययन भी उपयोगी हो सकता है। हां, उपयोगी हो सकता है अगर यह खयाल मे रहे कि शास्त्र का सागर सागर नही है, उसका प्रकाश प्रकाश नहीं है। यह भी स्मरण रहे कि शब्दो मे कहते ही सत्य खो जाता है, केवल छाया रह जाती है। यह सव स्मरण रहे तो शास्त्र को फेककर किसी दिन सागर मे छलॉग लगाने का मन हो जाएगा। इसलिए कई बार अज्ञानी कूद जाते हैं परमात्मा मे और ज्ञानी वचित रह जाते है।। जव हम अपने को भूलते है तभी स्वाध्याय वन्द होता है। इसका आरम्भ तव होता है जब हम अपने को स्मरण करते है । महावीर कहते है कि जब तुम मौजूद होते हो तो वह जो गलत है, कभी नही घटता। स्वाध्याय मे गलत कभी घटता ही नही । अगर शराब पीते वक्त भी तुम मौजूद रहो तो हाथ से गिलास छुटकर गिर जाएगा, तव शराब पीना असम्भव हो जाएगा, कारण कि जहर सिर्फ वेहोगी मे ही पिया जा सकता है। जब मैं आपसे कहता हूँ कि क्रोध करते वक्त मौजूद रहें तो मैं यह नही कहता कि आप क्रोध करे और मौजूद रहे, वस, शर्त इतनी है कि मौजूद रहे और क्रोध करे, फिर कोई हर्ज नही। मै आपसे यह कह रहा हूँ कि आप क्रोध करते वक्त अगर मौजूद रहे तो इन दो मे से एक ही हो सकता है-चाहे तो क्रोध होगा या फिर आप होंगे। जब क्रोध करते वक्त आप मौजूद होगे तो क्रोध खो जाएगा, आप होगे, क्योकि आपकी मोजूदगी मे क्रोध-जैसी रही चीजे नही आ सकती । जव घर का मालिक जगा हो तो चोर प्रवेश नहीं करते। जब आप जगे हो तव क्रोध घुस जाए, यह हिम्मत भला क्रोध कैसे कर सकता है ! महावीर कहते है कि रोशनी कर लो और निकल जाओ, क्योकि अँधेरे मे मोक्ष भी खोजोगे तो टकराओगे। परमात्मा को भी खोजोगे तो टकराओगे। अंधेरे में कुछ भी करोगे, टकराओगे। हमारा सारा ध्यान वाहर की तरफ है, इसलिए भीतर अंधेरा है। ध्यान वस्तुयो की तरफ है। स्वाध्याय करनेवाला इस रोशनी को भातर की तरफ मोडता और भीतर की तरफ देखना शुरू करता है। जव उसे कोई गाला
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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