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________________ महावीर परिचय और वाणी । २४७ हो चाहिए कि घर में कोई भी नहीं है । नही, वे सवा नहीं हैं। वस, वात यही खत्म हो गई, शरण से रुपने का उपाय हो गया। जिहें कारण ढूढना होगा व यह भी कहते हागे वि शास्ना म तीयवरा कह रक्षण वणित हैं जिनम एक रक्षण यह है कि जहा जहा तीथरा के चरण जाते है वहाँ वहाँ से घणा का भाव तिरोहित हो जाता है, शनुता का भाव मिट जाता है। यदि महाबीर तीथकर होते तो उनके कान मे कोई कीलें से ठोप पाता? कान मे कीलें तो बहुत दूर स नही ठोकी जा मक्ती, वहुत पास आना पडता है। यदि महावीर के पास आकर भी शनुता का भाव बच रहता है ता वात गडवट है, सदिग्ध है मामला, महावीर तीयवर नहीं हैं। मगर महावीर तीथकर हैं या नहीं इससे आप क्या पा लेंगे? हा उसकी शरण जाने मे आप बच सकेंगे, बस इतना ही। ऐसा प्रतीत होता है कि आपके शरण जाने से महावीर को कुछ मिलनेवाग है, जो आपने रोक लिया । मूल रहे है आप । शरण जाने से आपका ही कुछ मिर सकता था, जो आप चूर गए । अगर आपको शरण नहा जाना है तो आप कारण खाज ही लेंगे न जान के । आर अगर आपका भरण जाना है तो पत्थर की मूर्ति में भी आप कारण सोज मक्त हैं जाने के । मजा यह है कि शरण में जाएं तो पत्थर की मूर्ति भी आपके लिए उसी परम बात का द्वार खोल देगी, शरण न जाएं तो खुद महागेर सामने खडे रहगे और वह द्वार वद रहेगा । धार्मिक आदमी म उसे कहता हूँ जो कहीं भी शरण जाने का कारण खोजता ही रहता है। (१४) अगर इसा मसीह सूली पर चमकार दिसा दें और तब आप उनकी शरण में जाएं, ता, ध्यान रखना यह शरणागति नहीं है। इसमे कारण ईसा मसीह हैं, आप नही। यह सिफ चमत्कार को नमस्कार है, इसम कोई शरणागति नहा है। शरणागति तो तब होती है जव कारण आप हा, ईसा मसीह या बुद्ध या महावीर का चमत्कार नहीं। इस फ्फ को ठीक से समझ ल नही तो सूत्र का राज़ चूक जायगा। गरणागति उसी मात्रा मे गहन होती है जिस माना में शरणागति जाने का कोई। कारण नहीं होता। अगर कारण हाता है तो वह सौदा हो जाती है, शरणागति नहीं। रह जाती अगर बुद्ध मुर्दे कोपिला रहे हैं तो उसे नमस्कार करना ही पड़ेगा। इसम खूी आपकी नहीं है इसम तो कोई भी नमस्कार कर लेगा। परतु जब महा वीर-जैसा आदमी आपके सामने सडा हो जाता है जिसमे कोई चमत्कार नहीं है जिसम कुछ भी ऐसा नहीं है जो आपका ध्यान सोचे या जिससे आपको तत्काल राम दिपाई दे, जिसम कुछ भी ऐसा नही जो आपके सिर पर पत्थर की चोट-जैसा प्रमाण बन जाय, और आप उसकी शरण चले जाते हैं तब आपके भीतर प्रान्ति घटित हाती है, आपका बहकार विलीन हाने लगता है । सब तक, सब प्रमाण सव चालामा की बातें अहकार के ईद गिद हैं।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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