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________________ २४६ महावीर : परिचय और वाणी वह जो अमृत तथा जीवन का अनन्त रहस्य-स्रोत हे चारो तरफ, उसके प्रतीकशब्द है अरिहत, सिद्ध, साधु आदि। ये उस स्रोत की आकृति है हमारे पास । परमात्मा तो निराकार मे खडा है। (१२) लेकिन आकार में भी परमात्मा की छवि बहुत बार दिखाई पड़ती हैकभी किसी महावीर मे, कभी किसी वुद्ध या क्राइस्ट मे । लेकिन हम उस निराकार को पहचान नही पाते और उस आकृति मे कोई-न-कोई दोष निकाल लेते है । कहते है-क्राइस्ट की आकृति थोडी कम लम्बी है, यह परमात्मा की नही हो सकती। महावीर को तो बीमारी पकडती है, ये परमात्मा कैसे हो सकते है ? आपको खयाल नही कि आप आकृति की भूले निकाल रहे है और आकृति के भीतर जो मौजूद था, उससे चूके जा रहे है। आप वैसे आदमी हैं जो दीए की मिट्टी की भूले निकालता है और उसकी देदीप्यमान ज्योति की ओर दृक्पात नहीं करता। दीये की निराकार स्रोतरहित ज्योति ही मुख्य है, न कि दीये की मिट्टी, उसकी आकृति । लेकिन हम यह नही देखते कि कृष्ण ने क्या कहा, हम इसकी फिक्र करते है कि उनकी वाणी मे व्याकरण की भूले तो न थी । वे शास्त्र-सम्मत वाते करते है अथवा नही ! जब तक हम दीये की नाप-जोख करते है तव तक ज्योति विदा हो जाती है और हम मरे हुए दीयो को हजारो साल तक पूजते रहते है। मरे हुए दीयो का हम बडा आदर करते है । इस जगत् मे जिन्दा तीर्थकर का उपयोग नहीं होता, सिर्फ मुर्दा तीर्थकर का उपयोग होता है, क्योकि मुर्दा तीर्थकर के साथ भूल-चूक निकालने की सुविधा नही रह जाती। अगर आप महावीर के साथ रास्ते मे चलते हो और महावीर थककर वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तो आपको शक होगा और आप कहेगे—'अरे, महावीर तो कहते थे कि भगवान् अनन्त ऊर्जा, अनन्त शक्ति और अनन्त वीर्य है | कहाँ गई अनन्त ऊर्जा ? ये तो थक गए | दस मील चले और पसीना निकल आया ।' असल मे दीया थकता है। महावीर जिस अनन्त ऊर्जा की बात कर रहे है, वह ज्योति की वात है। दीए तो सभी के थक जायेंगे और गिर जायँगे । (१३ ) लेकिन हम दीये की भूलो पर ही ध्यान क्यो देते है ? हम यह इसलिए करते है कि हमे शरणागति से बचने का कोई बहाना मिल सके । आकृति के दोष कारण वनकर हमे शरण में जाने से रोक सके । बुद्धिमान् वह है जो कारण खोजता है शरण मे जाने के लिए, बुद्धिहीन वह है जो कारण खोजता है शरण से बचने के लिए । दोनो प्रकार के कारण खोजे जा सकते है। महावीर जिस गाँव से गुजरते है उस गाँव के सभी लोग उनके भक्त नहीं हो जाते । उस गाँव मे भी उनके शत्रु होते ही है और वे भी अकारण नही होते होगे। वे कहते होगे कि अगर महावीर सर्वज हैं तो वे उस घर के सामने भिक्षा क्यो मांगते है जिसमे कोई है ही नही ? यदि ज्ञान को उपलव्ध व्यक्ति सर्वज्ञ होता है-महावीर खुद ऐसा ही कहते थे तो उन्हें पता होना
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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