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________________ महावीर परिचय और वाणी २४५ (८) असर म सम्माहन मे और महावीर के सूत्र म एप या तरिफ सम्बध है। सम्माहित व्यक्ति वेहाती म विवश होकर समर्पित हो जाता है, उसमा सहकार पा जाता है। महावीर जाार उस अस्मिता और अह्वार वो खो देते हैं और समपित हो जात हैं। अगर आप होगपूवर मी, जागे हुए भी समर्पित हा सके और वह सकें कि 'अरिहत शरणम पयजामि' तो आप उसी रहस्य-लाय मे प्रवरा कर जाएंगे जहाँ रजरिव और पावलिता प्रयोग करता है। ___ ध्यान रहे मनुष्य के चित्त म जब तक अहकार है तब तक भय होता है। नय और अहवार एक ही का पे नाम हैं। अहवारी अत्य त मयातुर होता है । महावीर कहते हैं कि अभय तो वही हो सकता है जो समर्पित है शरणागत है। जिमने जपने का छाडा उसके भय का पोइ कारण नहीं रहा । (९) यह सूत्र गरणागति का है। इस सूप के साथ नमोवार पूरा हो जाता है। नमस्कार से शुम् हायर वह गरणागति पर पूरा होता है और इस अथ म मोपार पूरे धम पी यात्रा बन जाता है। गरणागति का पहला सम्बध उस आतरिय ज्यामिति म है जो आपके भीतर को चतना यो आरति बदरती है। दूसरी वात-आप प्रवृति ये साधारण नियमा के बाहर चरे जाते हैं, मिमी गह्न अथमे आप तिव्य हा जात हैं । और तीसरी वात-पारणागति आप जीवन द्वारा का परम कर्जा यी तरफ सोल देती है। विश्व-ऊर्जा के स्रोता की मार स्वय या साटना हो ता पारण म जान ये अतिरिक्त और काई उपाय नहीं है। (१०) इसलिए अहवारी व्यक्ति दीन-से-दीन व्यक्ति है सिने अपने को समस्त माता स तोड लिया है जो सिप अपन पर ही भरोसा कर रहा है। उसका जीवन सिप सदन या एक प्रम होगा, मरने की एक प्रक्रिया होगा। रग पाता है पूर अपना जय मे, मूय में चाटनारा स । अगर पूल ममर्पित है ता प्रफुल्लित हो जाता है। मय द्वारा मै उम रोशनी और प्रयाण मिलता है । जीवन-ऊना ये परम साता की सरप अपन वो पोल्ना ही परणागति है। (११) अगर आप मे भी कजा प्रवाहित हो जाती है, तो क्या परम गतिक प्रनि ममपित हारर आप उगी ऊनायो अपन म समाविष्ट नहीं कर सरते? कजा में प्रयार हम ना सरप होत हैं। जो कजा आपर यह राशी है यह आपकी तरपी यह सरती है। भार गगा सागर की तरफ बहती है तो पया सागर गगा की तरफ नहीं वह सरता? पहरणागति सागर। गगा को गगानी की तरण यहाने की प्ररिया है। पारणागति परती है मत, गिर जाम और तुम पालोग मि) जिमी रण म तुम गिर गए हो, उगस तुमा मुद सापा हा, पाया है। ईसा ममाह पता है कि जो भी अपाया बनाएगा यह मिट जायगा, रितु पय है व जो सपन। पो मिटा देन हैं क्यापि डारा मिगने भी पिर रिमी में सामप्य ही है !
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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