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________________ महावीर परिचय और वाणी २२७ हा गए हैं कि छिपान का कुछ नहीं बचा है। ऐसा नहीं कि उहाने कपडे छोडे हैं। उनके कपडे गिर गए है। एक दिन राह से गुजरत समय एक झादी म उनकी चादर उलय गई । इसलिए वि यादी के फूल गिर न जाये, पत्ते टूट न जाय काटा या चाट न लग जाय, उन्हान आधी चादर फाडकर वहा छोड दी। आधी रह गइ शरीर पर, फिर भी वह गिर गा। वह क्व गिर गई, इसका महावीर पो पता न चला । योगा को पता चला कि महानार नग्न खडे है। आचरण सहाा मुश्किल हो गया। लाचरण के रास्ते मम है, कि तु आचरण के मम्बध म हमार बंधे बंधाए बयार हैं। चौथे चरण म उपाध्याया वा नमस्कार कहा गया है। उपाध्याय-अर्यात भाचरण ही नहीं, उपदेश भी। उपा याय जानता है, जानकर वैसा ही जीता है और जसा वह जीता है और जानता है, वैसा ही बताता भी है। (१३) य चार स्पष्ट रेखाएं हैं । लेकिन इन चार के बाहर भी कुछ जानन वाले छुट सकते है क्याकि जाननवाला का वर्गीकरण नहा हा सक्ता । इसलिए पाचवें चरण म एक्सामा य नमसार है-नमा ललए स वसाहूण' । राक मजा भी माधु हे उन सबको नमस्कार। कुछ ऐस भी लाग हा मनन हैं जो बहुत सरर हा मोर उपदा देन म सकाच बरें। हा सकता है कि वे आचरण को भी छिपाएँ । पर उनका भी हमार नमस्कार पहुंचने चाहिए । ऐसी बात नहीं कि हमारे नमस्कार स उनका कुछ फायदा होगा । बात यह है कि हमारा नमस्कार हम स्पातरित करता है। न अरिहता को फायदा होगा न मिद्धा आचायाँ, उपाध्याया यार साधुजा को ही। पर आपको फायदा जस्र हागा। रेगिन हम अदभुत लाग हैं । अगर अरिहत भी सामन सडा हा जाय ता हम पहर इस बात का पता लगाएंगे कि वह अरिहत है भी या नहीं ? महावीर के बारे ममी लाग यही पता रगात लगाते जीवन नष्ट करते रहे। वे जाच परन आते वि महावीर जरिहत ह या नहीं तीयवर हैं या पहा । आप ाच भी कर लेंगे और यह मिद्ध भी हो जायगा कि महावीर भगवान नहीं हैं, ता आपदा क्या मिलगा असरी मवाल यह नहीं है कि महावीर भगवान है या नही । अमली मवाल यह है कि आपको पहा भगवान दीप सरते हैं या नहा-यहा भी? पथरा म, परत म ? असली गज तो नमन म है पुक जान म है। वह जा झुक जाता है उसके भीतर सब-कुछ बदर जाना है। मनवीर सिद्ध है या नहीं, यह वे खुद माने और पम । मापदे रिए चिन्तित होने वा का भी ता कारण नहा है। (१८) घ्यान म रस ले नि मन आप लिए है। मन्दिर म मूर्ति के चरणाम जब जाप सिर रखते हैं तव मवार यह नहीं हाता दिवे चरण परमात्मा के हैं या नहा । सवार इतना ही होता है दि चरण के ममा झुमाया। सिर परमात्मा के
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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