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________________ २२८ महावीर : परिचय और वाणी समक्ष झुक रहा है या नही । चरण तो निमित्त मात्र है । लेकिन झुकने मे पीडा होती है । अगर महावीर आएँ और आपके चरणो पर सिर रखे तो आपका चित्त Last प्रसन्न होगा | फिर आप महावीर को पत्थर न मारेगे | मारेगे ? लेकिन याद रहे, अगर महावीर आपके चरणो मे सिर रख दे तो आपको इससे कोई लाभ न होगा | आपकी अकड और गहन हो जायगी । महावीर ने अपने साधुओ से कहा है कि वे गृहस्थो को नमस्कार न करे । वड़ी अजीब-सी बात है । साधु को तो विनम्र होना चाहिए । लेकिन महावीर अपनी अगाध करुणा के कारण ही ऐसा कहते है ताकि गृहस्थ और गैर साधु मे नमस्कार पैदा हो – साधु उनको नमस्कार न करे । यदि साधु गृहस्थो को नमस्कार करेगा तो इससे गृहस्थो की अस्मिता और अहकार को प्रोत्साहन मिलेगा । नमोकार नमन का सूत्र है । नमन है ग्राहकता । जैसे ही आप नमन करते हैं। वैसे ही आपका हृदय खुलता है और आप भीतर किसी को प्रवेश देने के लिए तैयार हो जाते है | जिसके चरणो मे आपने सिर रखा, उसे आप भीतर आने मे बाधा न डालेगे, उसे निमत्रण देगे । लेकिन अगर भरोसा नही है तो नमन असम्भव है और नमन असम्भव है तो समझ असम्भव है | (१५-१६) मॉस्को यूनिवर्सिटी मे १९६६ तक एक अद्भुत व्यक्ति था, डॉ० वासिलिएव । उसने एक अनूठा प्रयोग किया है जिसका नाम है कृत्रिम पुनर्जन्म - आर्टिफिशियल री-इनफार्मेशन | ई० जी० नामक यत्र से पहले वह इस बात का पता 4 • लगाता था कि व्यक्ति कितनी गहरी निद्रा मे है । जव व्यक्ति अचेतन मन की अतल गहराइयो मे उतर आता तब वह उसे सुझाव देना शुरू करता । जिस व्यक्ति पर वह प्रयोग करता उसे -- यदि वह व्यक्ति चित्रकार होता तो बताता कि तुम पिछले जन्म मे माइकेल एन्जेलो या वानगाँग थे यदि वह व्यक्ति कवि होता तो उसे समझाता कि तुम पिछले जन्म मे शेक्सपियर थे । तीस दिन मे उस व्यक्ति का चित्त उस सुझाव को सचमुच ग्रहण कर लेता । उस साधारण से चित्रकार मे यह भरोसा हो जाता कि मै माइकेल एन्जेलो हूँ । और जब उसके भीतर भरोसा हो जाता तव तत्काल वह विशेष चित्रकार वन जाता । वासिलिएव कहता है कि अगर हमे भरोसा दिला दिया जाय कि हम बडे है तो हमारे चित्त की खिडकी वडी हो जाती है । इसलिए आनेवाले भविष्य मे हम जीनियस निर्मित कर सकेगे । सच तो यह है कि बासिलिएवोके अनुसार नव्वे प्रतिशत बच्चे प्रतिभा की क्षमता लेकर ही पैदा होते है, पर दुर्भाग्यका हम उनकी खिडकी छोटी करते जाते है। माँ-बाप, स्कूल, शिक्षक - सब मिलकर उन्हे साधारण आदमी बना डालते है | कुछ जो हमारी तरकीवो से बच जाते हैं, वे जीनियस वन जाते है, वाकी नष्ट हो जाते है । पर उसका कहना है कि असली सूत्र है ग्राहकता । इतना ग्राहक हो जाना चाहिए चित्त कि उसे जो कहा जाय वह उसके भीतर प्रवेश कर जाय ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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