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________________ महावीर : परिचय और वाणी लेकिन अरिहत शब्द नकारात्मक है । इससे उस व्यक्ति का बोध होता है जिनके सभी शत्रु समाप्त हो गए । असल मे इस जगत् मे जो भी श्रेष्ठतम अवस्था है, उसे निपेध से ही प्रकट किया जा सकता है । इसका कारण है । सभी विधायक शब्दों मे सीमा जा जाती हैं, निषेव मे सीमा नही होती । 'नहीं' की कोई सीमा नही, 'है' की तो सीमा है । 'नही' बहुत विराट् है । इसलिए अरिहत को परम शिखर पर रखा है। २२६ (१०) चूंकि अरिहत बहुत वायवीय और सूक्ष्म शब्द है, इसलिए ठीक दूसरे शब्द मे विधायक का उपयोग किया गया है - 'नमो सिद्धाणम्' । सिद्ध का अर्थ होता है वह जिसने पा लिया । अरिहत का अर्थ होता है वह जिसने कुछ छोड़ दिया । जिसने वो दिया उसे सिद्ध के ऊपर रखा गया है। क्यो ? सिद्ध अरिहंत से छोटा नहीं होता : सिद्ध वही पहुँचता है जहाँ अरिहत पहुँचता है । फिर भी, मापा में विधायक का स्थान दूसरा ही होगा । सिद्ध के सम्बन्ध मे भी सिर्फ इतनी हो सूचना है कि पहुँच गए । कुछ और कहा नही गया, कोई विशेषण भी नही जोडा । तीमरे सूत्र मे कहा है- आचार्यों को नमस्कार । (११) आचार्य उस व्यक्ति को कहते हैं जिसने केवल पाया ही नहीं, वरन् आचरण से भी प्रकट किया । आचार्य वह व्यक्ति है जिसका आचरण और ज्ञान एक है । ऐसा नही कि सिद्ध का आचरण ज्ञान से भिन्न होता है, लेकिन शून्य हो सकता है । ऐसा भी नही कि अरिहत का आचरण भिन्न होता है । लेकिन अरिहंत इतना निराकार हो जाता है कि हो सकता है, उसका आचरण हमारी पकड़ में न आए । आचार्य से शायद निकटता मालूम पडती है, ज्ञान और आचरण के अर्थो मे । आचार्य हमारी पकड मे आता है, लेकिन जहाँ से हमारी पकड शुरू होती है, वही से खतरा शुरू होता है । खतरा यह है कि कोई आदमी आचरण ऐसा कर सकता है कि वह आचार्य मालूम पडने लगे। जहां से सीमाएँ वननी शुरू होती है वही से हमे दिखाई पड़ता है और जहाँ से हमे दिखाई पडता है वही से हमारे अधे होने का डर है । पर मंत्र का प्रयोजन यही है कि हम उनको नमस्कार करे जिनका ज्ञान और आचरण अभिन्न है । (१२) आचरण वडी सूक्ष्म वात है और हम स्थूल बुद्धि के लोग हैं । आचरण को पकड़ पाना आसान नही । उदाहरणार्थ - महावीर का नग्न खड़ा हो जाना निश्चित ही लोगो को अच्छा नही लगा । गाँव-गाँव से उन्हें खदेडकर भगाया गया । गाँव-गाँव मे महावीर पर पत्थर फेके गए। महावीर की नग्नता लोगो को भारी पडी, उन्होने कहा कि यह आचरण-हीनता है । इसलिए मैं कहता हूँ कि आचरण को ठीक-ठीक पकड पाना मुश्किल है। महावीर का नग्न हो जाना निर्दोष आचरण है। जिसका कोई हिसाव लगाना कठिन है । उनकी हिम्मत अद्भुत है । वे इतने सरल
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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