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________________ महावीर परिचय और वाणी २१७ किन समप्टि-अचेतन हमारा है, मेरा नही । ब्रह्म चेतन हमारा भी नही, सबका है । उसमे पत्थर, पहाड पशु-पक्षी, नदी-नाले सव सम्मित्ति है। वह प्रकृति है। वहाँ जो उतर जाय उसके लिए जागे उतरन को नहीं रहता। वह अनत है, अथाह है गूय साई है। उसमे उतरने की प्ररिया अप्रमाद है । जहा आप हैं वहा में जागना गुरू परें। जिम दिन आप वहां जाग जाएगे उस दिन आपको नीचे वे दरवाजे की कुजी मिल जायगी। फिर वहां जागना शुरू कर और नीचे की वुजी मिल जायगी। जब तक आप चेतन मे हैं, तब तक आप अति चेतन में नही जासक्त ऊपर नहा बढ सक्ते । माप वी जडाको अचेतन म उतरना ही पड़ेगा । जिस दिन जापकी जड अचेतन मे उतर जायेंगी उस दिन आपकी शाखाएँ अति चेतन मे फैल जायेगी। आप जितना नीचे उतरेंगे अंधेरा उतना ही बढता चला जायगा। ब्रह्म अचतन म, प्रकृति म पूण अधकार है, अधकार ही अधकार है। इसके विपरीत आप जितना ही ऊपर बढ़ेंगे प्रकाश उतना ही बढता जायगा । वह जो ब्रह्म चेतन है ब्रह्म है, वह पूण प्रकाश है प्रकाश ही प्रकार है । रेक्नि ऊपर जाने का रास्ता नीचे होर जाता है। जो नीचे साई है उसके द्वारा ही चोटी तर पहुँचा जाता है। साधना की यही सबसे बडी कठिनाई है। यही समपना सबसे ज्यादा पाटिन हो जाता है कि ऊपर जाने के लिए नीचे जाने की आवश्कता होती है। ___ जत frस धम के अनुभव म जाना है उसे पहले नीचे उतरना पड़ेगा। जिसे मत होना हो उसे बहुत गहरे अर्यो म पापी होना पड़ता है । जा व्यक्ति गहरे अर्थों म पापी होने से बच गया. वह गहरे अर्थो म सत नही हो सकता। नीत्से ने ठीव ही कहा है कि मिस वक्ष को भावाश छूना है उसे अपनी जड़ें पाताल तक पहुँचाने की हिम्मत जुटानी पड़ती है। इसलिए ऊपर की फिर छो- दें, नीचे की फिर परें और एक एक कदम पर प्रमाद को तोडते चल जायें। वहां से शुरू करेंगे ? शुरू सदा वही से करना पड़ता है जहाँ आप हैं। जागने मे जागना शुरु करना पड़ेगा। महावीर अपने भिक्षुझा स निरन्तर रहते ये-विवक से उठो, विवेक से चलगे विवेक से बठा। विवेक का अथ है होश , 'अवयरनेस'। महावीर कहते है-जानत हुए चलो, होश म चाहो पूर्वक जो भी दिया जाता है वह सदा ठीक होता है। होशपूर्वक पुण्य ही किया जा मकता है. पाप नही। जो विश्व में जीता है वह गल्ती नहीं करता, गल्ती नही करने की पसम भी नहीं खाता । व्रत सिफ अधे लेते है। आँखवाल रोग व्रत नहीं रेत । व जिस ढग से जोते हैं, वही व्रत है। महावीर नब कहते हैं कि विवेक से चलो, तो इसका मतलब है वि चलने की किया हाशपूवव हो अप्रमादी हो। पर उठे ता जानो कि उठा । जमीन पर गिरे तो जानो वि गिरा। कोई भी किया. य। इसलिए महावीर से
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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