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________________ २१६ महावीर : परिचय और वाणी रचे । घर जाएं तो तय करके जाएँ कि टूट पडना है किसी के अपर । पूरी तरह क्रोध करें तो आप देख पाएंगे क्रोध को | इधर त्रोध चलेगा, उधर आप देखते रहेंगे कि क्रोध चल रहा है। अगर एक बार भी हम क्रोध का अभिनय कर सके तो फिर कभी क्रोध विना अभिनय के नही होगा । अभिनय ही हो जायगा। तो जो चीजे गहरी है उनको अभिनय से शुरू करे । जो चीजे गहरी है यदि उनपर होगपूर्वक अभिनय करें तो आप जाग सकेगे और अगर जागने के क्षणो मे जागना आ जायगा तो फिर नीद के क्षणो मे जागना शुरु हो जायगा । जिम दिन आप नीद मे जाग जाएंगे, उस दिन __ आप अचेतन मे प्रवेश करेगे। कृष्ण ने गीता मे यही बात कही है। रात मे जब योगी सोते है तब भी वे जागते रहते हैं। अगर आप नीद मे जागे हुए मो सके तो एक __ अद्भुत, चमत्कारपूर्ण घटना घटेगी-दूसरे दिन सुबह आप जैनी ताजगी का अनुभव __ करेगे वैसी ताजगी का आपको कभी पता भी न रहा होगा । उस ताजगी का शरीर से कोई सम्बन्ध न होगा। बहुत गहरे मे वह आपकी आत्मा की ताजगी होगी। आपके स्वप्न तिरोहित हो जायेंगे, क्योकि आप स्वप्नो के प्रति जाग जायेंगे । ऐसा नहीं कि आपको बाद में पता चलेगा कि स्वप्न आए थे। जव स्वप्न आने लगेंगे तभी आपको इसकी जानकारी हो जायगी। चेतन मन की क्रियाओ के प्रति जागने से अचेतन मन मे प्रवेश होता है, अचेतन मन की क्रियाओं के प्रति जागने से समप्टि अचेतन मे प्रवेश । स्वप्न अचेतन मन की ही क्रिया है। स्वप्न के प्रति जागते ही आप पाएंगे कि एक दरवाजा और खुल गया जो समष्टि अचेतन का दरवाजा है। इस समष्टिगत अचेतन की अपनी क्रियाएँ हैं जिनको धर्मो ने बडा महत्त्व दिया है। इस सामूहिक अचेतन से ही दुनिया के सभी निथक पैदा हुए है। सृष्टि का जन्म, प्रलय की सम्भावना, परमात्मा का रूपरग, आकार, नाद आदि का सम्बन्ध इसी अचेतन से है। नृत्य भी सामूहिक अचेतन से पैदा होता है, इसलिए नृत्य को समझने के लिए दूसरे की भापा का ज्ञान अनिवार्य नही। जो मासीसी भापा नही जानता वह भी पिकासो की पेटिग का आनन्द ले सकता है। चूंकि बहुत गहरे मे हम सब एक हैं इसलिए दुनिया के सारे धर्मों के प्रतीक कई बातो मे समान है। दुनिया की भिन्न-भिन्न भाषाओ मे जो समानता है वह समप्टिगत अचेतन की समानता है। सागर की लहरो की तरह हम अलग-अलग है, लेकिन बहुत गहरे मे हम परस्पर अभिन्न है। समष्टिगत या सामूहिक अचेतन की क्रियाओ के प्रति जागने से ब्रह्म-अचेतन मे प्रवेश होता है । ब्रह्म-अचेतन मे उतरने का अर्थ प्रकृति मे उतरना है। प्रकृति अर्थात वह जो कृति के भी पहले था, अर्थात् प्री-क्रीएशन । जो सृष्टि के पहले था, जिससे सब पैदा हुआ, जो पैदा होने के पहले भी था वह है प्रकृति । जिसे ब्रह्म-अचेतन कहा __ जाता है वह है प्रकृति । उससे ही सव आया । चेतन और अचेतन मन तो मेरा है,
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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