SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __२१८ महावीर : परिचय और वाणी जब किसी ने पूछा कि आप साघु किसे कहते है, तो उन्होने यह नहीं कहा कि जो मुंह पर पट्टी बाँचता है उसे मैं साधु कहता हूँ। मगर महावीर ऐमा कहते तो दो कीडी के आदमी हो जाते | उन्होने यह भी नहीं कहा कि जो नगा रहता है उने मैं साधु कहता हूँ। अगर वे ऐसा कहते तो बडे नासमझ सिद्ध होते । उन्होने कहा कि मैं 'सुरुता मुनि को साधु कहता हूँ। जो सोया हमा नहीं है, उमे मै मनि कहता हूँ। जो सोया हुआ है, उसे मै असावु कहता हूँ-'सुत्ता अमनि' । अगर आप जागकर जी रहे हैं तो आपकी जिन्दगी मे साधुता उतर नायगी। अगर आप नोकर जी रहे है तो आपकी जिन्दगी मे असावुता के सिवा और कुछ भी नहीं हो सकता। आप सोये-सोये भी साधु बन सकते है, लेकिन तब वह साधुता बनी हुई कृत्रिमहोगी और बने हुए माधु असाधुओ से भी बदतर होते है, क्योकि उन्हें यह भ्रम पैदा हो जाता है कि वे साधु है । जव असाधु को साधु होने का भ्रम पैदा हो जाय तब जनमजनम लग जायेंगे इस भ्रम से छूटने मे। ___ अप्रमाद साधना का सूत्र है । अप्रमाद सावना है । प्रत्येक क्रिया म्मरण-पूर्वक हो । एक भी क्रिया ऐसी न हो जो कि बेहोगी मे हो रही हो । वम आपकी धर्म-यात्रा शुरू हो जायगी । जाये पाताल मे ताकि पहुँच सकें मोक्ष मे । उतरे गहरे ताकि छु सके उँचाई को । जागने की कोशिश करे और जागने की कोशिश जब गहरी हो जाय तव रुक न जायँ, अन्यथा दूसरे चरण पर नीद पकड लेगी। स्मरण रखे कि याना लम्बी है परन्तु असम्भव नही, कठिन है। नीचे-नीचे उतरते जाएँ, ऊपर की फिक्र छोड दे। सात मजिलो का यह मकान जिस दिन पूरा जान लिया जाता है, उस दिन फिर इसमे सात मजिले नही रह जाती। बीच के सब परदे गिर जाते है । दीवाल हट जाती है और एक भवन रह जाता है । उस एक का अनुभव ही परमात्मा का अनुभव है | उस एक का अनुभव ही मोक्ष का अनुभव है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy