SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर परिचय और वाणी २१५ म उतरना पडता है ताकि वह सिद्धि के आयाश का छू सके । उस चतन स अचतन म, अचेता से ब्रह्म अचेतन म जाना पड़ता है। जब वह चतन से अचेतन म जाता है तव अचानक उपर का भी एक दरवाजा सर जाता है-अतिचतन या दरवाजा। जय वह समष्टि अचतन में प्रवेश करता है तो साथ ही समष्टिगत चतन या भा दरवाजा सुल जाता है । जब वह ब्रह्म-अचता म जाता है तब उसी समय ब्रह्मचतन का दरवाजा सुर जाता है । वह जितना नीचे उतरता है उतना ही ऊंचा उठना जाता है। इस लिए ऊँचाई थी फिर छाड दें, गहराइ पी फिर करें। __ अपनी ही गहराइया म हम से उतरें? ___ अगर कोई पूछे कि हम तरना यमे सौखें तो उम हम क्या कहेंगे ? उस हम पहेंगे कि तरना गुरु परा। पहली बार जब कोई पानी में उतरता है तब बिना तैरना सीसे ही उतरता है। असल में बिना सीख लेरने के लिए उतर जाने से ही सीसन की शुरूआत होती है। हाँ, इतनी ही सावधानी बरतें वि गहरे पानी म न उतरें। ___ता आपस में परम जागरण की आक्षा नहा रसता हूँ। थाडे में पानी म उतरना T परें । अपनी छाटी छाटी वियाओ का जानना शुरू करें। छोटी छोटी नियामा य प्रति जागना शुरू करें। वपडा पह्न रह हा तो जागे हुए पहन, जूत टार रहे हा तो जागे हुए डालें, कुछ मुन रह हा तो जागे हुए मुनें। इसके बाद उन नियामा के प्रति जागें जिनके लिए पछताना पडता है । गोध घणा, अभद्रता आदि ये प्रति जागे। नगर थाप गुवह से उठकर सांप तक जागने का प्रयोग करेंगे तो पोडे ही दिना म माप एक्दम दूसरे आदमी हो जायगे । आपका प्रमाद टूट जायगा। इमपा प्रमाण पया हागा वि आपपा प्रमाद टूट गया? इसका प्रमाण यह होगा कि नाट म भी आपका जागरण शुरू हो जायगा। जिस दिन जागरण म आपको र टूटगी नगी दिन आप नीद म भी सचान प्रवेश पर सवंगे। गप रोज सोन हैं। यदि जापपी उम माठ साल की है तो आपने वीस वप सपिर विताए । सपिन आपका पता है कि नीद पर आती है कस आती है ? यया है नाद? अपन जावन की पत्ती वडी पटना सभी आपका परिचय नहीं हुआ रहता। अभी आप तो यह जानते हैं कि आप पर साए, या जरा आप पर यस गिग आप नाद म पसब आर न यह नि मुबह नीद यस टूटी, म से विदा होगा? जिग दिन आप जाग या पडिया म जाग जायंगे और जागन की पिया जागवर परन गेंग उस दित आपा नीद म भी सचेतन प्रया होगा।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy