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________________ महावीर परिचय और वाणी २१३ पर और नीचे फली हुई मन की मजिला या हमे तब तक पता नहीं चलेगा जब तक हम अपनी मजिल म सोए हुए हैं। इसलिए पहरे हम अपन सोए हुए हान के तथ्य को टीम समझ लें जिरासे जागने की यात्रा गुरु की जा सके। क्या आपने पभी पयाल क्यिा कि आप मोए हुए आदमी हैं गायद नहीं, क्यापि सोए हुए आदमी पा इतना भी पता चर जाय कि म साया हुआ हैं तो जागने वी गुरआत हो जाती है। असर म इतनी बात का पता चलना वि में सोया हुआ हू, जागन की सबर है। साए हुए का अनुभव भी जागने का अनुभव है नीद वा नहा । हम पोय करते हैं, गालिया बरते हैं सांप को क्षमा मांगते हैं और कहते हैंमाप करें, मेरे मुह से एसी बातें गिर गई जिहें मैं नहीं चाहता था। क्या पूछा जा सकता है कि मैं नहीं चाहता था तो वाते से निकल गई? क्या मैं जागा हुआ था या सोया हुया ? जब जब मैंने प्रोध किया है तब-तब मुझ यह अनुभव हुआ है कि जा मुये नहीं करना चाहिए वही में परता रहा हूँ। इससे जाहिर है कि मैं सोया हुआ आदमी हैं। यदि सोया हुआ न होता तो मुगे इस वात पा पता रहता कि मैं वही कर रहा हूँ जो मुये नहीं करना चाहिए। हम पश्चात्ताप इसलिए करते हैं कि हमारे समस्त पाय वेहाती म होते हैं । जव हो वा क्षण आता है तब पछतावा होता है। हो म जीनेवाले आदमी की जिदगी म पश्चात्ताप नहीं होता क्यामि वह जो भी परता है वह पूरी तरह समझ-यूझवर करता है। पछताता वह है जो सोया __ अंगरजी या एक मुहावरा है-पॉलिंग इन लव' । मुहावरा इसलिए ठीय है कि हम प्रेम भी सोयी हुई हालत म परत है, प्रेम म मूछित हो जात हैं। इसलिए प्रेमीजन अक्सर पहत हैं कि मैंने प्रेम नहा किया, हो गया । हो गया या क्या मतलब है? चीज नीट म ही होती हैं, जागन म की जाती हैं। आपने प्रेम दिया है या हा गया है ? अगर हा गया है ता आप बहो। बादमी हैं। आप मशीन हैं यत्र है आप पर चीजें घट रही हैं। आप उन्हें पर नहीं रहे, यही आपका प्रमाद है। आप जा मी वर रह हैं साए हुए पर रह हैं। प्रेम पणा दास्ती दुश्मनी, प्राप, क्षमा प्राय पित्त-गव साए हुए हो रहा है। आप जिया जा रहा है । आपपी इस अवस्था या नाम प्रमाद है। मैं रात पी की बात नहा कर रहा है दिन पी नीर पी थान पर रहा हूँ, जब कि हम जाग हुए भी साए हुए हात है। पमी-कभी, मिगी गनरे ये क्षण म, पानी दर हम जाग उटते हैं, अपया नहीं। इसरिए हमारे मा म पनर मी मा इच्छा पदा हानी है पतर म भी पाहा रस जान एगता है ग्यारि मार म हम जागत हैं । जुए मा पारपण जागन ने रस स ही आता है। हम हार तर ये रतर शो हैं जिनम हम पमर का जाग पाते हैं। पिरनाद शुम हो जाती है। इस आरस्मिा पापा से माननी पूरा तर जाग हा सपता ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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