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________________ पंचम अध्याय अप्रमाद दुमपत्तए पडुयए, जहा निवड रागणाण अच्चए । एव मणुयाण जीवियं, समयं गोयम । मा पमायए ।' -~-उत्त० २० १०, गा० १ यद्यपि मनुष्य मात मजिलो का भवन है, फिर भी वह केवल एक मजिल को जानता है, उस एक मे ही जीता मीर मर जाता है । जिन मजिल में हम जीते हैं, उसका नाम चेतन मन है । उसके नीचे दूसरी मजिल है जो तलघरे में है, जमीन के नीचे है। उस मजिल का नाम अचेतन मन है। उससे नी थोडा और नीचे समष्टि अचेतन का तल है और उसके भी नीचे ब्रह्म अचेतन का तल । जिस मजिल पर हम रहते है उसके ठीक ऊपर अति-चेतन की ( 'सुपर-कॉन्सस' की) मजिल है और उनके ऊपर समष्टि चेतन ('फ्लेक्टिव कॉन्सस') की मजिल । समष्टि चेतन की मजिल के ठीक ऊपर ब्रह्म-चेतन ('कॉज्मिक कॉन्सस') का तल है । यद्यपि यह मकान सतमजिला है, फिर भी हममे से अधिकाश लोग चेतन मन मे ही जीते और मर जाते है। आत्मज्ञान का अर्थ है सात मजिल की इसी व्यवस्था से पूर्णतया परिचित हो जाना। इसमे कुछ भी अनजाना रहा तो मनुष्य अपना मालिक कमी नहीं हो सकता। चेतन मन की मजिल मे ही जीते रहने का नाम प्रमाद है। प्रमाद का अर्थ है मूर्छा, वेहोशी, निद्रा या सम्मोहित अवस्था। और साधना का लक्ष्य है इस प्रमाद को तोड़ना, इस मूर्छा से जागना। चूंकि हम एक ही मजिल मे जीते है और केवल उससे ही परिचित रहते हैं, हमारी अवस्था उन लोगो की-सी होती है जो सोए हुए होते हैं। यदि हम जागे हुए होते तो वाकी मजिलो से अपरिचित रह जाना असम्भव होता । हम सोए हुए है, इसलिए हम जहाँ है वही जी लेते है। हमे और मजिलो का पता नही चलता। ___फ्रॉयड ने जिस अचेतन मन की बात की है वह उसका अनुभव नहीं है, केवल अनुमान है। इसलिए पश्चिम का मनोविज्ञान अभी भी योग नहीं बन पाया। 'मनोविज्ञान उस दिन योग बनेगा, जिस दिन वह अनुभव मे रूपातरित होगा। १. जिस तरह रात बीतने पर वृक्ष के पीले पत्ते झड़ जाते है, उसी तरह मनुष्य-जीवन का भी एक-न-एक दिन अन्त आता ही है; ऐसा समझकर हे गौतम ! तू समय-मात्र का प्रमाद न कर।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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