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________________ - महावीर परिचय और वाणी २०७ फमाता ही नहीं । लेकिन सयासी लम्बे अरसे से अपने को घाखा दे रहा है । उप वास से यौन नष्ट नहीं हाता, वहाग पड़ा रहता है। पडा रहता है, प्रतीक्षा करता रहता है कि जब शक्ति मिले तो जळू। गहस्य और सयासी भ्रातियो के उलट छोर हैं । अवाम का अथ है कि शक्ति तो पदा हो रेक्नि यौन से विसर्जित न हो। जब शक्ति बहुत बडे पमाने पर सगहित होती है जब उस सम्भोग में विसजित नहीं किया जाता तब यह आपके भीतर जव गमन गुर करती है। जब भी कोई शक्ति रोकी जाती है तब वह ऊपर उठती है। अमा आपकी शक्ति योन केन्द्र के ऊपर नहा उठती। और ध्यान रह सक्म मनुप्यका निम्नतम सेंटर है। समय लें कि मनुष्य के भीतर सेक्स जैस छह द्वार और है और ऊजा एवंएक द्वार पर जाती है। जब वह यौन केद्र से ऊपर उठकर अय चना पर जाती है तब आप हरान होत है और कहत हैं कि मैं कमा पागल था, मैं शक्ति को कहाँ सो रहा था? सचमुच आपल्यक्तित्व की पहली परत पर ही जीत है--सनस की परत पर जहा क्वड-पत्थर से ज्यादा कुछ नहा मिल सकता। अगर वहा से ऊजर इटठा हा और थाडी माग बढे ता दूसरा चर सक्रिय हो उठता है, खुलन लगता है। जव जापफी ऊजा सातवें चर पर पहुँचती है मस्तिष्क तक, तर सेक्स सेटर (मूलाधार) और सहस्रार के बीच अन्भुत शक्ति प्रवाहित होने लगती है, आपकी कुडलिनी जाग जाती है, आप आत्मभान का उपाय होते है । जिस दिन आपकी समस्त जजा इक्टठी हार माप के मस्तिष्क के चत्रा वा चलान लगनी है, उस दिन पहली बार आप ब्रह्म का उपल ध हात ह। लेकिन हम ता पहले ही चद्र पर खो जाते हैं। वह हमारा छिद्र सब कुछ विदा परवा दता है। लेकिन मैं यह नही रहता कि आप सेक्स का काम-वासना यो दवाएँ। अगर आपने दवाया और रोका तो वह विद्राह पर उठेगी। शक्ति का दबाया नहा जा सरता, सिप माग दिया जा सकता है। सेक्स से रन्नेवारे लाग जिदगी भर के लिए कामुक हो जात हैं। सेस्म से एडवर भी कोई व्यक्ति ऊपर के चना तर नहीं पहुंचा । ब्रह्मचर्य सक्स से लडाई नहा है। इसरिए याद र- कि हमार पास अतिरिक्त ऊर्जा चाहिए हा जो ऊपर से पत्रा फा गतिमान कर मर । ऊर्जा को पदा करने पा ही नहीं, उसे नई दिशाएं दन या भी इतजाम होना चाहिए । इस सम्म प म दा-तीन सूत्र स्मरणीय हैं। पहला सून ता यह है कि यदि हम वतमाम जीएं तो कर्जा इक्टठी होगी और ऊपर की ओर प्रवाहित होने लगगी । जो भविष्य म जीने की कोशिश करता है उसी कजा बह जाती है। भविष्य दूर है और भविष्य स हमारा जो सम्बध है यह कामना माही हो सपता है । भविष्य है नहा, भविष्य होगा। और हाणा से हमारा सम्पय सिफ वामना या इच्छा या हा मक्ता है। वासता या मतलब हो है भविष्य मे जीन
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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