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________________ २०६ महावीर : परिचय और वाणी अणु के भीतर अनन्त ऊर्जा छिपी है। अगर अणु को तोड दिया जाय तो विस्फोट होता है और शक्ति वाहर वह जाती है। विज्ञान ने अणु को तोटा है, धर्म ने जोड़ा है। इसलिए धर्म का नाम है योग, जोड । मनुप्य की चेतना भी अणु है और यदि हम उस अणु को टूटा हूआ रहने दे तो उससे सब वह जाता है, अनन्त ऊर्जा वाहर निकल जाती है। अगर वह अणु टुटे नहीं, वरन् सग्लिप्ट हो जाय, बन्द हो जाय तो भीतर अनन्त ऊर्जा उपलब्ध होती है । इस अनन्त ऊर्जा की अनुभूति अनन्त परमात्मा की अनुभूति है, इसका अनुभव अनन्त ग्रानन्द का अनुभव है । इस अनुभव के बाद फिर कुछ अनुभव करने को शेप नहीं रह जाता। लेकिन ऐमा समझना चाहिए कि आदमी टूटा हा अणु है, चेतना का टूटा हुआ ऐटम है। उनमें छेद है । जन्म के क्षण मे हम ऊर्जा से भरे हुए होते है । जब तक जन्म नहीं होता तव तक हम भरी वाल्टी होते है। जन्म के साथ वाल्टी पर उठी कुएँ से कि पानी गिरना शुरू हुआ । अगर ठीक से समझे तो जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु गुरु हो जाती है, हमारा खाली होना शुरू हो जाता है। हम फूटी वाल्टी की तरह खाली होने लगते है । अगर कोई व्यक्ति अपने पूरे जीवन की ऊर्जा को ठहरा ले तो वह जिम ताजगी का अनुभव करेगा उमका हमे कोई भी पता नहीं। और काम, ऊर्जा को खोने की विधि है । काम के अनेक रूप है जिनमे सर्वाधिक सघन रूप यौन है। इसलिए धीरेधीरे काम और यौन, काम और सेक्स पर्यायवाची बन गए । भोजन से ऊर्जा मिलती है, नीद से ऊर्जा बचती है और व्यायाम मे ऊर्जा जगती हे। इस ऊर्जा का वहत सा अश सिर्फ जीवन-व्यवस्था मे व्यय हो जाता है। भोजन के समय आप साधारण मृत पदार्थ को भीतर ले जाते है और आप की जीवन-ऊर्जा उसे जीवन्त बनाती है। इनमे बहुत ऊर्जा व्यय होती है। चलते-फिरते है तो ऊर्जा व्यय होती है, बैठते हैं तो ऊर्जा व्यय होती है । जीवन की इन सारी आवश्यक प्रत्रियाओ के वाद जो थोडीवहुत ऊर्जा बचती है उसका आप सिर्फ सेक्स मे उपयोग करते हैं। यह वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति दिन भर धन कमाए और सध्या समय जाकर उसे नदी मे फेक आए। यह बड़ी ऐसई जिन्दगी है। अजीव पागलपन है ! • इकट्ठा करना, फेकना, इकट्ठा करना, फेकना । ऊर्जा का इकट्ठा करना तो ठीक है, लेकिन खोने के लिए ही इकट्ठा करना बहुत वेमानी है। यह जिन्दगी नही हो सकती, कही भूल हो रही है। अगर कोई आदमी कहे कि मैं इसलिए मकान बनाता हूँ कि गिरा दूं तो हम कहेगे कि उसका दिमाग ठीक नही । लेकिन हम सब जिन्दगी मे करते क्या हैं ? यही तो करते है। इधर आप ऊर्जा कमाते और यौन मे व्यय करते है उधर सन्यासी ऊर्जा को सदेह की दृष्टि से देखता है, उपवास करता है, खाना कम खाता है। आप कमाकर खो दतह, १९
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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