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________________ २१० महावीर : परिचय और वाणी ) पडेगे जो काम नही है, जो सिर्फ खेल है, लीलाएँ है । कृष्ण की तरह उसे यही समझना होगा कि जिन्दगी एक खेल है । नाच रहे हैं, पर कुछ मिलनेवाला नही । बाँसुरी वजा रहे है, पर कुछ मिलनेवाला नही । राम की तरह उनकी कसौटी उपयोगिता की न होगी। राम बहुत उपयोगितावादी है, इसलिए एक धोवी के कहने पर पत्नी को । बाहर कर देते है। रघुकुल-परम्परा के लिए वे क्या नहीं करते ? परन्तु यग, वग आदि सव-कुछ उपयोगिता है, बहुत गम्भीर मामला है। अगर की जगह कृष्ण होते तो सीता को न निकालते। हो सकता है, वे खुद ही बांसुरी बजाते हुए भाग जाते । वे सीता की अग्नि-परीक्षा भी न लेने---बहुत बेहूदी बात मालूम पडती । प्रेम की भी कही परीक्षा होती है ? प्रेम अपने आप में पवित्र है : उमकी और कोई पवित्रता नही हो सकती । सीता ने राम की अग्नि-परीक्षा नही ली, यद्यपि राम नी अकेले थे, उनका भी क्या भरोमा ? स्त्री का तो थोडा-बहुत भरोसा हो सकता है, पुरुष का होना जरा मुश्किल है । लेकिन सीता ने नहीं कहा कि राम की भी परीक्षा हो । सीता के लिए जिन्दगी एक गम्भीरता नही, खेल हे। और स्मरण रहे, प्रेम परीक्षा नही मॉगता, वह सब परीक्षाएं दे सकता है। जिन्दगी जितनी गम्भीर होती जा रही है कामकता उतनी ही बढती जा रही है। आप जितना गम्भीर होगे, तनाव से उतना ही भरते जायेंगे और तनाव से जितना ही भरेगे उतना ही रिलीफ चाहेगे, काम की ओर प्रवृत्त होगे और आपकी कामुकता वढेगी। आप गक्ति फेककर अपने वोझिल चित्त को हलका करेगे। तीसरा सूत्र है-जिन्दगी को गम्भीरता से न ले । गम्भीरता बुनियादी रोग है, लेकिन आमतौर से साधु-संन्यासी बहुत गम्भीर होते है। जिन्दगी गम्भीरता नही है। जो जिन्दगी मे गम्भीर है वह कभी काम से मुक्त नही हो सकता। जिन्दगी खेल वन जाय तो आदमी काम से मुक्त हो सकता है। ध्यान रहे कि वच्चे इतने अकाम इस कारण होते हैं कि उनकी जिन्दगी गम्भीर नहीं होती। जैसे-जैसे वे गम्भीर होते जाते है, वैसे-वैसे उनकी जिन्दगी मे सेक्स भरता जाता है। सेक्सुअल मैच्युरिटि की दृष्टि से लडकियॉ जहां चौदह साल मे सयानी होती थी वहाँ अव वे ग्यारह साल मे सयानी होने लगी है और सम्भावना है कि इस सदी के अत मे वे सात साल मे सयानी होने लगेगी। असल मे लडकियाँ अव सात साल मे ही उतनी गम्भीर हो जाती है जितनी चौदह साल में पहले हुआ करती थी। शिक्षा, व्यवस्था, शिष्टाचार, सभ्यता आदि रोज भारी होती जा रही है। इस बोझ और गम्भीरता के अनुपात मे ही बच्चे सेक्स की शक्ति को बाहर फेकने के लिए मार्ग खोजने लगते है। इससे उलटा भी हो सकता है। अगर हम देर तक उन्हे हलका रख सके तो वीस-पच्चीस साल तक वे काम से वचाए जा सकते हैं। जितना गम्भीरता बढ़ेगी, उतना वोझ वढेगा, जितना वोझ वढेगा, उतना तनाव होगा और
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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