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________________ महावीर परिचय और वाणी २०५ पर ध नही हो सकती । व्यक्ति सव-कुछ पा सकता है सिफ स्वयं का खो देता है। सब पा लेने का भी कोई सार नहीं, यदि स्वय सो जाय । जव ऊजा भीतर की ओर बहती है तब वह जबाम बन जाती है। काम का अर्थ है-इच्छा कामना निजायर । जब भी हम कोई कामना करत हैं तब हम बाहर की ओर रहना पड़ता है । पुछ पाने को है बाहर इमलिए हम बाहर की भार बहना पडता है। हम सब बाहर रहते हुए रोग हैं, हम सब कामनाए हैं। चौतीस घटे हम बाहर का भोर वह रह हैं किसी को धन पाना है, किसी को यश, रिसी का प्रेम । आश्चय उन सांगा का देखकर होता है जा परमात्मा का पाने के लिए बाहर का तरफ बहते चल जाते हैं। जिसे मोक्ष पाना है वह भी साचता है कि मान कही ऊपर है, बाहर है। परतु ध्यान रहे धम का बाहर से कोई सम्बध नहीं । इसलिए जिन इश्वर वाहर हा वे समझ ल कि उसका धम से कोई नाता नहीं है। जिनका माक्ष बाहर हो वे अच्छी तरह विश्वास कर लें कि वे धामिद नहा है। पाने की कोई भी चीज जिनके लिए बाहर हो वे समझ लें पिकामी हैं। सिफ एक ही स्थिति स काम म मुक्ति होती है और वह यह कि हम भीतर बहना शुरू करें। जम के साथ हम गक्ति लवर आते हैं और मृत्यु के साथ शक्ति गाकर वापस लौट जात हैं। जो व्यक्ति मत्यु के साथ भी शक्ति लेकर वापस रोटता है उस फिर आने की जरूरत नही रह जाती। अकाम जम मरण से मुक्ति है काम बार-यार ससार में लौट आने का कारण है। वाम है मृत्यु की खोज, अकाम है अमत को तराश । __स्मरण रहे कि मनुप्य की कोई भी कामना कभी ठीक अथों म पूरी नहीं हाती, होनहा सक्ती। याहर की तरफ दौडना ही जिसकी जिदगी बन गई है यह एक इच्या पूरी हुई नहीं नि दूसरी का जनमा लेता है । रहना चाहिए कि वह एक के बाद अनेय इच्छामा को जनमा स्ता है फिर दौरना शुरु कर देता है। सच पूटिए तो हम बाहर की तरफ दौड़ती हुई कर्जाएँ हैं इसलिए हम साली कारतूमा की तरह मर जाते हैं। इसलिए हमारी मृत्यु सौंदय नहा हो पाती, एक अनुभव नहा या गती । मृयु पी पीडा निस्तज और साला हो गए नादमी पा है जा सव भांति रिस्त हो गया है जिसम अव युछ भी नहीं बचा। रविन मौन मा आनन्द देती है उस जो सारी नही, भरा हुआ है। हम नरे हुए कस रह जाय, इस रहस्य का समय पामे रिए आम है रेग्नि अवाम का समापन के लिए पहले शाम की समस्त यात्रा रामप रनी चाहिए। इस ममम ता भीतर की तरफ यहना बडा मरल वान हो जाती है। हम पता है कि पटाय अपपा स बना है। इस सदी म पजारि प्रत्येर
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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