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________________ महावीर : परिचय और वाणी ध्यान रहे, जिस आदमी को अपनी जिन्दगी मे रूपान्तरण लाना हो उसे स्थगन से—पोस्टपॉन्मेट से—बचना चाहिए। उसे चाहिए कि वह दूसरे को अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार न ठहराए । जिसने भी इस दुनिया मे स्थगन की नीति अपनायी, रूपातरण मे विलम्व होने दिया और दूसरे को जिम्मेदार ठहराया, वह आदमी धार्मिक नही हो पाया । धार्मिक आदमी वह है जो कहता है कि पूरे का पूरा दायित्व मेरा है । अधार्मिक आदमी कहता है कि दायित्व किसी और का है, मैं तो भला आदमी हूँ, लोग मुझे बुरा किए दे रहे है । मै कहता हूँ कि आधा अच्छा आदमी बुरे आदमी से भी बुरा है | आधे सत्य पूरे असत्यो से बुरे होते है, क्योकि पूरे असत्य से मुक्त हो जायेंगे आप, आधे असत्य से कभी मुक्त नही होगे । आधा सत्य बधन का काम करेगा । तो मै आपसे कहूँगा कि विचार के अनुसार आचरण मत करना, आचरण के अनुसार ही विचार करना, ताकि चीजे साफ हो और अगर चीजे साफ हुई तो कोई भी आदमी इस दुनिया मे बुरे आदमी के साथ नही जी सकता | आप भी अपने बुरे आदमी के साथ नही जी सकते और एक दफा यह पता चल जाय कि मैं एक बुरी पर्त के साथ जी रहा हूँ तो इस पर्त को उखाड फेकने मे उतनी ही आसानी होगी जितनी पैर से काँटा निकालने मे होती है। प्याज की इस पर्त को, इस ओढे हुए व्यक्तित्व को उघाडकर फेक देने मे उतनी ही आसानी होगी जितनी शरीर से मैल को अलग कर देने मे होती है । लेकिन अगर कोई आदमी अपनी मैल को सोना समझने लगे तो कठिनाई हो जायगी । २०२ हम उपदेश ग्रहण करने को बहुत आतुर और उत्सुक होते है । फिर हम सोचते है कि उसके अनुसार आचरण बना लेगे । यह आचरण वैसा ही होगा जैसा रगमच पर अभिनेता का होता है । पहले उसे खेल की स्क्रिप्ट मिल जाती है, पाठ मिल जाता है, फिर वह उसे कठस्थ कर लेता है, इसके वाद वह रिहर्सल करता है और अन्ततोगत्वा आकर मच पर दिखा देता है । अभिनय का मतलव ही है विचार के अनुसार आचरण, लेकिन आत्मा का मतलब कुछ और है । इसका मतलब है आचरण के अनुसार विचार | अगर चोरी खोनी है तो ओढे हुए चेहरे खोने ही चाहिए और वह क्षण आना ही चाहिए जब आपका कोई चोर चेहरा न हो । चोर चेहरे को हटाइए, चाहे महावीर से लिये हो, चाहे बुद्ध या कृष्ण से । उन चेहरो को हटाइए और उसको खोजिए जो आपका है । जिस दिन आपके सारे चेहरे गिर जायँगे उस दिन अचानक आपके सामने वह रूप प्रकट होगा जो आपका है । जैसे ही वह रूप प्रकट होता है वैसे ही आप अचोरी को उपलब्ध हो जाते है । याद रखिए, जिस आदमी ने व्यक्तित्व चुराने बन्द कर दिए उसने चेहरे चुराने बन्द कर दिए। जिसने आचरण चुराने बन्द कर दिए वह आदमी वस्तुएँ नही चुरा सकता, यह असम्भव है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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