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________________ महावीर परिचय और वाणी २०१ मटिक गियर का फ्र' है, और कोई फर नहीं। सभ्य आदमी का धार्मिक हाना मुश्किल हो जाता है क्याकि उसे चारी का पता ही नही चलता। जीजस, बुद्ध और महावीर एक असभ्य दुनिया में पैदा हुए थे । सम्य दुनिया में हम बुद्ध महावीर और जीजस जस आदमी पदा नहीं कर पा रहे हैं। असभ्य जादमी इतना बचन नहीं था। मैं आपसे कहना चाहूंगा कि अचारी को समझने के लिए अपन चेही बदलने के प्रति आपका सजग होना पटेगा । अचारी के महानत में आप अपने चहरे का बदलना दखें। घर से मदिर की आर जात समय जरा होगपूर देखें कि चेहरा किस जगह वदलता है। पिस जगह दूकानदार हटता है और सच्चा साधक जाता है । जहा लिसा रहता है 'कृपया जूता यहा पहा नीचे तप्ती होनी चाहिएकृपया चेहरा यहाँ । कई लाग ता अपना चेहरा लिये ही भीतर घुस जात है। जूता रिय मदिर म चले जाएँ तो उतनी अपवित्रता नहीं होगी, जितनी चेहरा रिये चले जाएँ ता होगी। मेरी सलाह है कि जब जाप चेहरा बदलें तो जरा होत रख कि आप इस क्य बदल रहे हैं। अब तक आप दूसरा पर हसत रहे हैं अब आप अपने ऊपर हँसना शुरू कर देंगे। और जब आप जान बूझकर चेहरा बदलेंगे ता चेहरा बदलना मुश्किल हो जायगा और धीरे धीरे आपको एहसास होगा कि आप हममा अभिनय परल रहे हैं। धीर धारे चेहरा बदरना कठिन हा जायगा और जर चेहरा बदलना कटिन हागा तथा बाच का अतराल बढेगा और जाप कभी कभी चेहरे के बिना रह जाएगे, तब आपका अमला चेहरा जनमगा-आपके भीतर आपका चेहरा आना गुम होगा। तो पहली बात यह है कि चौबीस घंटे बदलते हुए चेहरो का खयाल रसना और दूसरी यह पि पिसी का चेहरा-चाहे वह महावीर पा हा या कृष्ण का या प्राइस्ट पा-अपणा बनान की कोशिश मत करना । भूलकर मत करना । अनुयायी बनना ही मत अयथा चार बने विना योई उपाय ही नहीं। जो बहुत इमानदारी से चोरी करता है वह चेहरे चुराता है, जो बईमानी से चहरे चुराता है वह हर नहीं पुराता, सिप विचार चुराना है। पहित के पास लिए विचार को चारी हाती है, तथापित साथ न पास बेहरा को चारा । दा तरह की चोरी है--विचार को और चेहरे की। चटर की चोरी परनवार आदमी पो हम इमानदार चार पहन हैं। जब आचरण मे पाद विचार माता है तब उसका सुगध और होती है क्याकि आचरण जात्मा म आता है। frस आदमी का आचरण विचार स आना है वह आरमी चार है। शास्त्र स नाया हुआ विवार खुद भी चारी है पिर शास्त्र म पाए हुए विचार पे अनुसार जीवन का ढाल एना और बड़ा चारी है। मैं नहीं रहता पि विचार के अनुसार मारण हा । मैं महता हू पि आचरण पे अनुसार विद्यारहा।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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