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________________ महावीर परिचय और वाणी २०३ काई कह सकता है कि हमार चोर होने म मात्राएँ हैं डिग्रीज हैं । हो मक्ता है कि हम दो पैसे न चुरात हा, लेकिन इसमे यह मत समझ लेना कि हम अचोर है । इमसे क्या पक पडता है कि हमन दा पसे चुगए वि दो लाख ? चोरी मे कोई माया हो सकती है ? दा पसे चुराऊँ तो भी मैं उतना ही चोर हू जितना दास चुराने चारा बोर हाता है। हम बच्चा से कहते हैं कि तुम विवकान द जस हा जाया। इस बच्चे की कौन सी गरता कि वह विवेकानद जसा हो जाय ? अगर वह विवकानद जसा हा गया तो चार हा गया। हम वह्ते हैं महावीर जसा हा जाओ। अब कोई गग्ता की है आपने पदा हाकर ? अगर महावीर का ही मिफ पैदा होने का हक है पथ्वी पर तो अबतक दुनिया सत्म हो जानी चाहिए। वह हो चुचे पदा मामला सरम हा गया। अब आपके होने की क्या जररत है ? महावीर की काबन कापा होन की क्या आवश्यक्ता है ? कृपा करक वह भी मत करना जो मैं कह रहा हूँ। मैं जो कह रहा हूँ उम समझ लेना और छोड दना । समझ आपये पास रह जाय, विचार नहीं । सुरभि रह जाय, नहीं । यह समय आपया जिदगी को बदले तो बदर देना, न बरले ता ऊपर से थापन की वाशिश मत करना अयथा चारी जारी रहेगा।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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