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________________ १९८ महावीर : परिचय और वाणी है। अध्यात्म की दृष्टि में यह चोरी हो गई। जिस दिन मैने वोषणा की कि मैं गरीर हैं उसी दिन आध्यात्मिक अर्थों में मैंने नोरी की। मां के पेट मे एक तरह का शरीर या मेरे पास । आज अगर मेरे गामने उसे रस दिया जाय तो में साली आँसो से इमे देख नही मरूंगा और न यह मानने को राजी होऊँगा कि कभी यह मेरा गरीर था। फिर बचपन मे एक शरीर था जो रोज बदलता रहा। इस प्रकार मुजे कितने ही शरीर मिले और इन मारे गरीर को मैं कहता रहा कि यह मैं हूँ। कोई अभिनेता उतना अभिनय नही करता जितना अभिनय में करता हूँ। बचपन से लेकर मृत्यु की घडी तक अभिनय करता रहूँगा। मेरा जीवन अभिनय की लम्बी कहानी है। मभी मुझ-जैसे ही है। ऐमा एक भी आदमी नहीं जो अभिनय न करता हो । कुगल-अकुशल का फर्क भले ही हो, लेकिन ऐसा कोई नहीं जो अभिनेता न हो। जिस दिन अभिनय करना वन्द हो जाय उमी दिन व्यक्ति के भीतर धर्म का उदय होता है । जिस शरीर को हम अपना मानते है वह भी अपना नहीं है और हम जिस व्यक्तित्व को अपना मानते है वह भी अपना नहीं । हमारे मुखोटे उवार के मुखौटे है और अपने ऊपर लगाए गए चेहरे दूसरो के चेहरे। जो बडी से बडी आध्यात्मिक चोरी है वह चेहरो की चोरी है। हम जो भी बाहर से साधते है वह स्वभावत हमारा चेहरा ही बनता है, जो भीतर से आता है वही हमारी आत्मा होती है । हम धर्म को बाहर से ही साधते है। अधर्म होता है भीतर, धर्म होता है बाहर । चोरी होती है भीतर, अचोरी होती है बाहर। परिग्रह होता है भीतर, अपरिगह होता है बाहर । इसलिए हम जिन्हे धार्मिक आदमी कहते है उनसे ज्यादा चोर व्यक्तित्व खोजना बहुत मुश्किल है। आध्यात्मिक अर्थो मे चोरी है उसे दिखाने की कोशिश जो आप नही है । हम सब बहुत चेहरे नैयार रखते हैं। जब जैसी जरूरत होती है वैसा चेहरा लगा लेते है और जो हम नही है वह दिखाई पडने लगते है। हमारी मुस्कराहट आँसुओ को छिपाने का इन्तजाम होती है, हमारी प्रसन्न मुद्रा उदासी को दवा लेने की व्यवस्था होती है। आदमी जैसा भीतर है वैसा बाहर दिखाई नही पड रहा है। यह आध्यात्मिक चोरी है। इस प्रकार की चोरी करनेवाले लोग वस्तुएं नही चुराते, व्यक्तित्व चुराते है। और याद रहे, वस्तुओ की चोरी बहुत बडी चोरी नही है, व्यक्तित्वो की चोरी बहुत वडी चोरी है । जिस आदमी को अचोरी की साधना करनी हो उसे पहली बात यह समझ लेनी चाहिए कि वह भूलकर भी कभी व्यक्तित्व न चुराए। महावीर से जो व्यक्तित्व लेगा वह चोर हो जायगा। वूद्ध और कृष्ण से जो व्यक्तित्व लेगा वह चोर हो जायगा। अव दूसरा कोई भी आदमी दुवारा महावीर नही हो सकता हो ही नहीं सकता। वे सारी की सारी स्थितियाँ दुवारा नहीं दोहराई जा सकती जो महावीर के होने के वक्त हुई थी। न तो वह पिता खोजे जा सकते है, न वह मॉ खोजी जा सकती है। नता
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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