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________________ तृतीय अध्याय अचौर्य दतमोहणमाइस्म, अदत्तम्म विवज्जण । अणवज्जेसणिज्जस्म, गिण्हणा अवि दुक्कर ।' --उत० अ० १९, गा० २८ - हिंमा या एस आयाम परिग्रह है। हिंसर हुए विना परिग्रही होना सम्भव है। जर परिग्रह निक्षिप्त हो जाता है तव चारी या जम हाता है। चौरी परिग्रह की हा विलिप्तता है। यदि परिग्रह स्वस्थ हो तो उसस धौर धोरे अपरिग्रह वा जम होता है। जब पर अस्वस्थ होता है तन परायी चीज अपनी दिपाई पड़ने लगता है, यद्यपि मरा अपना नहीं दिखाई पडता। अस्वस्थ परिग्रही दूमर को ता दूसरा मानता है पिन दूमरे का चीज को अपना मानने की हिम्मत परन रगता है। अगर मारा मी अपना हो जाय तर दान पैदा होता है। जब दूमर पो चीज भर अपनो हो जाय मार दूसरा दूारा रह जाय, तब चोरी पैदा होती है। पारी और दान म यही गमााता है । गेनों एप ही चीज व दा छार हैं । यदि चोरी मद्वारे पो चीमा अपाा वन न की मालिश है तो दान मगरे मा अपना यनाने यी मागि। पारी म हम दूसरे को पीन छीनकर अपनी पर रेत हैं, न म बापती चीज दुमरे को मार देत हैं एप वप म दाा पारी या प्रायश्चित्त है। दानी अपार अतीत वाचार हाता है और चार अपार विध्य पाद धम पा सम्बप परतुका यी चोरी स उतना नहीं जितना गहरी पारिया में है। चोरी गर का गहरा आध्यास्मिर अप है। मगर पिया नि समाज पूरी तरह समद हा गया ता पारी "हो जाएगी। सभा को भारी अविनर गरीवा में कारण पंदा हाती है। पिन और मारियां हैं। महायत पागम्य पदन गरी पारिया म है। मागमारा आध्यास्मिर अप यह है रिजा मरा रहा है उगम पाना पापित परू। यहत-बुध मरा रहा है जिस मन थपना पोधित रियाई पपि मापनी किसी भी पारोदामी । परार मरा नहा, सिमपापित तारि पद भरा १ दांत पुतसारा भी उमर मालिशिविरम नरना गाय हो निरम (पापरहित) मोर पोर पस्नु हो प्राणता - हानों याने मात्रा (पीपगापम निरगान सार उपमें हो जाने पोय।) -
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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