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________________ महावीर परिचय और वाणी १६९ जागरण में जितना चतय होता है उतना ध्यान में होना चाहिए। तो ध्यान ए मध्य अवस्था है और नासाग्र दप्टि आख के पीछ के स्नायुओं का मध्य अवस्था म छोड़ देती है । व म सब मिट जाता है, केवल व्यक्ति रह जाता है, खुली आंख म सब सत्य हो जाना है और व्यक्ति मिट जाता है । आधी वद और आधी खुली आस वा यह भी अथ है तो हम सनसे टूट हुए हैं और न सबस जुड़े हुए हैं। न तो यह बात सच है कि सब सच है और हम झूठे हैं और न सच है । महावीर का सारा जोर सम पर है निरतर 'सम्यक शद उनक प्रयोग म सर्वाधिक आनेवाला है। प्रत्यक चीज में सम, प्रत्यव बात में मध्य प्रत्यक बात यहाँ सडा हो जाना जहाँ अतिया न हा । आँख के मामले में भी मति न हो । यही कि मव झूठे हैं और हम J तो आँस पूरी सुली हो जोर T पूरो वद । ससार भी सत्य है आधा और हम भी सत्य हैं आधे | जगत माया है यह वद आस वा अनुभव है । अगर बाद पूरी सुली के अनुभव से जिए तो इंद्रिया के रस ही दोष रह जात है, आत्मा विलीन हो जाती है, जगत सत्य होता है, आत्मा असत्य हो जाती है । महावीर कहते हैं 'जगत भी सत्य है और आत्मा भी सत्य है ।' न तो जगत असत्य है और आत्मा । पदाथ भी सत्य है और परमात्मा भी । दोना एक बडे सत्य के हिस्सा हैं | दोना सत्य हैं और प्रतीक है वह नासाग्र दृष्टि-- यानी महावीर कभी पूरी आग वद वरखे ध्यान नही करेंगे और न अपनी आंसा का कभी पूरी सोल्वर ध्यान करेंगे । नाधी अस खुरी ओर आधी बन्तावि बाहर और भीतर एवं सम्बन्ध बना रहे। जागे भी रहें और न जागे मी । बाहर और भीतर एक प्रवाह होता रहे चेतना का । चावा असे रोगा ने ध्यान नही दिया, बस खुली आख रखा । साधारणत हम चार्वाक वा मागी बहेंगे। मैं चार्वाक वो त्यागी बहुंगा । यद्यपि वह घी पर जी रहा है फिर मा बहुत बाहर जी रहा है। खाने पीने तक उसका योग है । तयोग की आर उसकी दप्टि ही है। महावीर प्रत्येव चीन में एव सत्तुरन और समता का ध्यान रखते हु । इम fre उनी तिर और चार्याक, दानो को दृष्टि से मन है। साधारणत जागति के दो ही रूप हा सकते हैं वहिमुखी और अतमुसी । वहि मुसता जीवा वा व्ययता म उल्पा देती है और भीतर से तोष्ट देती है । अतमुता जीवन स तोड देती है, भीतर हुवा देती है--सब तरफ से दरवाजे व परती है । पहली बात उतनी ही अधूरी है जितनी दूसरी बात । असर मे एक तीसरा स्थिति भी है जिस पर महावीर का य ह । इस स्थिति मे न ता हम भीतर दमत हैं और न बाहर | सिर्फ दगना रह जाता है for प्रकाश जिसका कोई कारण नहीं है । न तो हम भी होते हैं भोर न वहिमुगा । स स्थिति में व्यक्ति मिप हाना है । यम, यह होता मात्र ही जागति है--पूण जागृति । ता महावीर हन है कि जा पूरी
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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