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________________ १७० महावीर : परिचय और वाणी तरह जाग गया वही साधु है, जो सोया है वही असाघ है। असाथ दो तरह के हो सकते हैं : एक जो बाहर की ओर सोया हुआ है और दूसरा जो भीतर की ओर सोया हुआ है। साधु एक ही तरह का हो सकता है जो सोया हुआ ही नहीं है, जिसमे मूळ नामकी चीज नहीं । एकागता और ध्यान के बुनियादी फर्क को भी सयाल मे ले लेना चाहिए। ध्यान का किसी एक विन्दु पर एकाग्र हो जाना ही एकाग्रता है । एकाग्रता का विन्दु वदलता नही, चचलता का विन्दु वदलता जाता है । एकाग्रता मे एक बिन्दु रह जाता है, शेप सब सो जाता है। व्यान मे ऐसा गोई विन्दु ही नहीं होता जिसके प्रति चित्त सोया हुआ है । ध्यान एकाग्रता नहीं, वस जागरण है। किमी एक चीज के प्रति जागरण नही, वरन् समस्त के प्रति । जागरण का यही अर्थ है। जब मेरी ओर एकाग्रता होगी तव पक्षियो का कलरव, कुत्ते का भीकना आदि सुनाई नहीं पड़ेगा। जब जागरण होगा तब एक साथ घटनेवाली ननी घटनाओ का पता चलेगा। अभी भी एक साथ हजारो घटनाएं घट रही है। इन सबके प्रति एक साथ जागा हुआ होने को महावीर अमूर्छा कहेगे, जागरण कहेगे। जब चेतना के दर्पण पर विचार प्रतिफलित होन लगें, साँस की धडकन सुनाई पडने लगे, आँस के पलको का हिलना महसूस होने लगे तभी पूर्ण स्वभाव की उपलब्धि होती है। यह पूर्ण स्वभाव सदा से हमारे पास है । हम उसका उपयोग ऐसा कर रहे है कि वह कमी पूर्ण नही हो पाता । उपयोग न करने के कारण गेप के प्रति मूर्छा है और कुछ ही के प्रति जागरूकता। इसलिए यह सवाल पैदा हो जाता है कि मूर्ची कहाँ से आई ? मूर्छा कही से भी नहीं आई। यह हमारे द्वारा निर्मित है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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