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________________ १६८ महावीर : परिचय और वाणी उसाडता है, जो बाल उनाडने में ल लेता है। वह भी एक तरह से मताता है अपने को । जव महावीर मे दूसरे के शरीर को नग देखने का भाव न रहा तो वे खुद नग्न सडे हो गए। लेकिन कुछ लोग ऐने भी हैं जो अपने को नगा दिसाना चाहते है। यह पागलो का वर्ग है। महावीर के आग-पान ऐने मन्यानी हो गए है जो यह चाहते है कि कोई उन्हे नगा देखें। जो आदमी सरलता की वजह मे नग्न हुआ है, वह जीवन के और हिस्सो मे भी तरल होगा । मगर जिसे नग्नता में रस मिलता हो उसके लिए यह भोग का ही हिस्सा है। उसके लिए वल इस बात पर नही कि कपडे छुटे, बल इस बात पर है कि नग्नता जाई। जो आदमी सिर्फ इसलिए नग्न हुआ है कि दूसरे लोग उसको नगा देवं, वह बीमार है। वह जीवन के अन्य हिस्सो मे भी सरल नही होगा । दूसरे हिस्मो में भी उसकी विक्षिप्तता प्रकट होगी। इस तरह का धार्मिक पागलपन ज्यादा सतरनार चीज है क्योकि उसमे धर्म भी जुडा हुआ है । धार्मिक पागल निरीह नहीं होता, दूसरो को निरीह करता है। धर्म ने बहुत तरह की विक्षिप्ततानो को औचित्य दिया है। पर इस ओनित्य को तोड देने की जरूरत है और यह साफ समझ मे आ जाना चाहिए कि यह तभी टूटेगा जब हम दुख को धर्म से अलग करेगे। इस दुखवाद के भीतर ही तारा मौचित्य छिप जाता है। मेरी दृष्टि मे धर्म सुस फी सोज है, परम सुख की खोज । और धार्मिक व्यक्ति वह हे जो स्वय भी आनन्द की ओर निरन्तर गति करता है और इसके लिए चेप्टारत होता है कि चारो ओर निरन्तर आनन्द बढे । न तो वह स्वय को दुख देता है और न दूसरो को दुख देने की आकाक्षा करता है। उसके मन में दुख के प्रति न कोई आदर है न कोई सम्मान। ऐसे वाक्ति को अगर हम धार्मिक कहे तो धर्म परम आनन्द की दिशा बनता है। परन्तु जब तक वह परम दुख की दिशा बना हुआ है। कहा जाता है कि महावीर नासाग्न दृष्टि से ध्यानावस्थित हुए। नासाग्र दृष्टि का मतलब है-आँख आधी वद और आधी खुली। अगर नाक के अग्र भाग को आप आँख से देखेगे तो आवी आंख बद हो जायगी, आधी सुली रहेगी। साधारणत हम चाहे तो नीद मे अपनी आँखो को बद रखते है या जागरण मे खुली । नासाग्र दृष्टि होती ही नही । पूरी वद ऑख निद्रा में ले जाती है और पूरी खुली आँख जागरण लाती है। ध्यान दोनो से अलग अवस्था है। वह न तो निद्रा है और न जागरण । वह निद्रा-जैसा शिथिल है और जागरण-जैसा चेतन । न तो वह नीद है और न जागरण । वह तीसरी अवस्था है। उसमे नीद और जागरण, दोनो के तत्त्व है । नीद मे जितनी शिथिलता होती है उतनी ही ध्यान मे होनी चाहिए और
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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