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________________ ११० महावीर : परिचय और वाणी 1 है । वे समझ ही नही पाए महावीर को जिस आदमी ने कभी दिन को अपना गुरु नही बनाया, वह कभी किसी को शिष्य बनाने की बात भी नहीं सोचना | दोनो सयुक्त वाते है। जब वह अपने लिए यह ठीक नहीं मानता कि किसी की गु की तरह स्थापित करे तो वह कैसे मान सकता है कोई उसे गुरु की तरह स्थापित करे ? जिस महावीर ने किसी शास्त्र को नही माना उस महावीर का शास्न बना लेना कहाँ का न्याय है ? पूछा जा सकता है कि महावीर को किस चीज की गोप थी जिसके कारण उन्होने गुरु की शरण न ली ? इसमे सन्देह नहीं कि वे जिस चीज की सोज कर रहे थे उसे किसी ने अपने गुरु से नहीं पाया। हां, कुछ नोजें है जो गुरु से मिल जाती है । जीवन का बाह्य ज्ञान - गणित, भूगोत्र आदि गुरु से मिल जाता है, लेनि सत्य का ज्ञान गुरु से नही मिल सकता | अगर में सत्य की खोज मे हूँ तो मे किनी को बीच मे लेना नही चाहूँगा। अगर मे सोन्दर्य की तन मे हूँ तो में अपनी जसो से सौन्दर्य देखना चाहूँगा । महावीर उस नृत्य की सोज में थे जो स्वयं मे ही छिपा रहता है, किसी के पास जाकर मांगने, हाथ जोडने और प्रार्थना करने में नही मिलता । इससे कोई ऐसा न समझ ले कि महावीर बडे अहकारी व्यक्ति रहे होगे । उनका सा विनम्र व्यक्ति मिलना मुश्किल है । वे न तो आदर मांगते थे और न किसी व्यक्ति-विशेष को गुरु मानकर आदर देते थे । जो समस्त के सम्मुख झुक चुका हो, उसे आदर देने-लेने से क्या मतलब ? श्रादर देनेवाले आदर पाने को इच्छुक रहते हैं और नम्रता का मुखौटा पहनकर अपने अहकार को छिपा रखते है । जो न गुरु बनाता या बनता है, जो न शास्त्र रचता या मानता है, उसे अहकारी कैसे कहा जा सकता है ? सत्य की खोज करनेवालो के लिए न तो कोई मित्र होता है और न सगी-साथी । सत्य की खोज तो 'अकेले की उडान है अकेले की तरफ ।' इसलिए महावीर बहुत सचेत थे । उनको मानने और प्रेम करनेवाले भी अगर इतने ही सचेत होते तो दुनिया ज्यादा बेहतर होती । तव दुनिया मे विशुद्ध धर्म होता — यहाँ न कोई जैन होता, न हिन्दू, न ईसाई और न मुसलमान । अगर गुरु की धारणा ही टूट जाय तो दुनिया मे आदमियत होगी, धर्म होगा, लेकिन पथ न होगे । आज एक ईसाई के लिए महावीर अपने नही मालूम पडते क्योकि दूसरे लोगो ने उन्हें अपना लिया है। अगर गुरुके आसपाम पागलपन पैदा न हो, श्रद्धा और अन्धभक्ति पर आधारित गिरोह न बने, तो सम्प्रदाय एक-एक कर विदा हो जायें । तव क्राइस्ट भी हमारे हो और मुहम्मद भी हमारे । महावीर ने दरिद्र होना नही चाहा, इसलिए उन्होने किसी एक को नही पकडा । वे पूर्ण समृद्ध हो गए, क्योकि सब कुछ उनका था । लोग पूछते है कि क्या कारण था कि भिक्षाटन के पूर्व महावीर कुछ शर्त लगा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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