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________________ महावीर परिचय और वाणी पिया करते थे यार, उदाहरणाथ, पह्न थे कि आज मैं ऐस घर से भाजन गा जिसपे मामन दा गौवे लड रही हो गवा रग काला हो, घर के दरवाने पर एक स्त्री सडी हो उसका एक पर वाहर हो जऔर दूसरा भीतर उसकी भासा से आसू बहत हा पर होठा पर मुस्कान हो ? जसा मैंने कहा, महावीर की सोन पर ही जम म पूरी हो की थी। इस जन्म मे व सिफ बाटने आए थे। इसलिए उहांने यह प्रयोग किया जिगर मैं वाटने ही आया हूँ और मेरा स्वाथ नहीं है ता विश्वसत्ता मुझे गाजन दगी ही । यदि वह न दे तो मैं भोजन भी क्या ल ? यदि यह जीवन देना चाह तो ठगेर, न देना चाह ता भरे जीवन का क्या मूरय ? इसलिए महावीर कठिन पान रगापर ही निररते । मम जिजीविषा वा लेग भी न था। इसलिए ये विश्व पी समग्र सत्ता की इच्छा पर अपने का छोड देत । उनका कहना था कि अगर विश्व का समग्र मत्ता यो मरा जीता मजूर है तो वह भोजन दे। मैं अपनी और से ही जीता और न अपने मोजन के लिए ही रिसोरा अनुग्रह मानू गा। गहरी बात यह है कि जो यक्ति पूर्णता को उपलच हुआ लौट आया है, उसके लिए यम-जसी कोई चीज नहीं । वम होता है इच्छा स, उसका जम होता है आसा से । महावीर वहत हैं कि में यह भी इच्छा नहीं करता कि मये भाजन मिलना चाहिए । म इरो भी विश्व-सत्ता पर छोड देता हूँ। यह समस्त के प्रति समपण है। मगर पूरी हवाएं, पहाड, पत्थर, मानवीय चतना पा-पनी, देवी-देवता चाहत हैं कि महावीर एक दिन और जोएं तो उन्हें उनके माजन वा इतजाम करना हा होगा। इसीलिए नहावीर मात लगा देत हैं, ताकि ये पान सके वि विश्व-सता या उनका जीवित रहना मजूर है और पूरे जगत ये अस्तित्व न उहें गाजन दिया । बहुत अनूठा था उनका यह प्रयोग । जन मुनि भाज मी ऐसा परत हैं लेविन श्रावक उनको पहले ही बता जाते हैं या कुछ ऐसे प्रवप पर रगते हैं ताकि उनकी गत पूरी हो जायें । दग-पग लोग अपन परा में गामो करा रटवा दत हैं, एक-दो स्त्रियाँ बच्चे पर राडी हो जाती हैं। लेकिन महावीर या दान कठिन हुआ परती थी और उनकी पूर्ति किसी व्यक्ति विशप या पाययों व गामूहिक्ष यत्न से हाना असम्भव था। जन तक विश्वरात्ता राजा न हाती तप तप ये गते ममी पूरी होती । इस तरह महावार पा जीना परमामा की मर्जी पर था। व प्रये पल उसकी मर्जी स ही जीना चाहा थे, अपने लिए नहा । उनका पूरा जीवन ग बात या प्रमाण है शि विश्वसत्ता या जिम व्यक्ति पी जररत होता है, उमा जीवन ५ लिए यह स्वय सामाजन करती है। वृद्ध गह त्याग मी पपा प्रचरित है। वह ह कि जिस पोट पर सवार होकर व पर स निकले थे, उसने पराको टाप बारह घास सन गुना सरती थी । पिन्तु उस रात जब युद्ध उम पर सवार हा निाले, तो उसपी सर नीचे वता पूत रगते
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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