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________________ महाधार परिचय और वाणी गान की ओर या मिद्धात की आर या गुरु की ओर मुह परना---बासी और उधार नावे लिए उत्सुक हाना था। दूसरा को, ज्यादा म ज्यादा, शटर मिल सकते थे सिद्धात मिल सकते हैं, लकित सत्य नहा मिल सकता था । इसलिए महावीर ने पिसी गुरु के प्रति आत्म समपण नहीं दिया। यह भी समय लेने जैमी बात है कि रामपण ही करना हो ता क्षुट और सीमित रे प्रति क्या दिया जाय ? ममस्त के प्रति क्या नही? एक थे प्रति समपण म त है। ऐसा समपण सौदा है। जिमस हम मिलमा, जिससे हम पा सकते हैं ऐसी आकाक्षा को ध्यान में रसवर अगर समपण दिया गया तो समपण कसा हुआ? वह सौदा हुआ, गन्देन हुआ। समपण का अप है बिना किसी गत या नाकाक्षा के स्वय को छोड़ देना । इसलिए कोई किसी व्यक्ति ये प्रति कभी समर्पित नही हो सकता। समर्पित हो सकता है सिफ परमात्मा ये प्रति और परमात्मा का मतव्य है समस्त । अगर परमात्मा भा एक यति है तो उसके प्रति भी समपण नहीं हो सकता। समपण सदा वेशत होता है। ____ मैं मानता हूँ कि महावीर न समपण रिया, लेकिन पिसी एक व्यक्ति के प्रति नहा, समस्त के प्रति और समस्त के प्रति जिनवा गमपण है, उनया हम पता नहा चाता। जो समस्त के प्रति समर्पित है उसका समपण हमारी पहचान में नहीं आता पोंपि हमारा मापदट सीमित सोने का है । अगर मैं किसी व्यक्ति से प्रेम प तो यह बात समझ म आ सकती है रविन अगर मेरा प्रेम समस्त के प्रति हो ता इसे ममझना मुश्किल हो जायगा। हम प्रेम को पहचान ही तय पात हैं जय वह यक्ति से बंध जाय। इसरिए हम महावीर वे प्रेम का ठोर-ठीक समय ही पात। मेरा मानना है कि महावीर पूर्ण समर्पित व्यक्ति थे। लेकिन पूर्ण समपित व्यक्ति रिसी एप के प्रति समर्पित नहीं होता। वह निसी एक ये आगे सिर नहीं झुपाता, इरारिए नही पि उगमें अहबार है वलि इसरिए कि उमका गिर याही हुआ है सर बोर। और ध्यान रहे कि जो व्यक्ति किसी एक के प्रति पुरता है वह दूसरे ये प्रति सता अवडा रहता है और जो व्यक्ति किया ये रण छता है वह दूगरा से चरण एलाने पो आतुर है। आपने देसा होगा कि जा आरमी रिमी पी मुशामत Tता है यह सपा पाच या स युगाम की मांग परता है। जो आगमी नग्रता बिगता है वह दूसरा रा नम्रता को मांग धरता है। महावीर पिसी या 7 तो महात्मा मानत हैं और न हीतात्मा। वे दम विचार म ही रहा परत । जार लिएई गामा नहो, पयारि वाई होनाल्मा हा । एप सो महात्मा याओ तो शेप अनगिात सगा की हीगारमा यनाना नारा हो जाता है नही तो पाम हा पलता । एप मारमा पी रेगा गीगोयरिए करोग होगा पारा राहा परना पड़ता है। 1मि महावीरो रिमी को गुरु ना बनाया, इम लिनिनन रोगों ने उह गुर बनाया है उन 7 महावीर र साप अमाप किया
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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