SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पष्ठ अध्याय महावीर के व्यक्तित्व के नए आयाम न पक्खओ न पुरओ, नेव किच्चाण पिट्ठओ। न जुजे अरुणा ऊरं, तयणे नो पउिस्मुण ।' -उत्त० अ० १० गा०१८ __ क्या महावीर को ऐसा कोई व्यक्ति न मिला जिसके चरणो में वे आत्म-समर्पण कर सके ? क्या कारण था कि उन्होंने किसी गुरु की शरण न ली ?-न प्रश्नों के उत्तर वडे सरल है। महावीर को पता था कि जो दूसरे से पाया जा सकता है, उसका कोई महत्त्व नही । सत्य के फूल कभी उधार नहीं मिलते। इसलिए जो भी सत्य की खोज मे निकला हो, वह गुरु को खोजने नही निकलता। हाँ, असत्य की खोज करनी हो तो गुरु की खोज बहुत जरूरी है। सत्य की खोज मे गुरु अनावश्यक है । सीलने की क्षमता बहुत आवश्यक है। असली सवाल सीखने की क्षमता का ही है। जिसके पास ऐसी क्षमता है वह गुरु नही बनाता, सीखता चला जाता है। गुरु बनाना एक तरह का बन्धन निर्मित करना है। मेरा मानना है कि सत्य कोई ऐसी चीज नही जो किसी एक व्यक्ति से प्रवाहित हो। वह पूरे जीवन पर छाया हुआ है। अगर हम सीखने को उत्सुक हो तो सत्य सब जगह से सीखा जा सकता है। ___ महावीर मे सीखने की अद्भुत क्षमता थी, इसलिए उन्होने कोई गुरु नही बनाया। गुरु खोजा भी नही । वस सीखने निकल पड़े। उधार भी कभी ज्ञान हो सकता है ? सब चीजे उधार हो सकती है, लेकिन ज्ञान उधार नहीं हो सकता। ज्ञान उसका ही होता है जो पाता है। वह दूसरे को देते ही व्यर्थ हो जाता है। गुरुओ और शास्त्रो की कमी न थी, वे सब तरफ मौजूद थे। सिद्धान्तो की कमी न थी, सिद्धान्त भी मौजूद थे। लेकिन महावीर ने सबकी ओर पीठ कर दी, क्योकि १. विनीत शिष्य आचार्य की पंक्ति मे न बैठे, उनसे आगे भी न बैठे, उनके पीठ पीछे भी न बैठे और वह इतना निकट भी न बैठे कि उनकी जांघ से जाँघ मिल जाय । यदि गुरु ने किसी कार्य का आदेश दिया हो तो वह शय्या पर सोते-सोते अथवा बैठे-बैठे न सुने ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy