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________________ महावीर परिचय और वाणी १०३ न जरना । अयाय सिफ यह है कि जो हमारी जीवन-व्यवस्था है, वह हम बहुत दुख म डाल रही है। आर दुसी हम ही बन रहे है, काई बना नहीं रहा है। दुनिया म ऐस भी लाग है जो चांटा मारन म ही आन्ति हा । ऐसा लगता है कि ऐसे लोगा को कम फर मागन नहा परत । लेकिन हम सयाल नहा कि जो आदमी चाटा मारने म आनदित होता है वह आदमी नहीं रह गया। वह आदमी के तल से बहुत नीचे उतर जाता है। उसने चांटा मारने म इतना सोया जितना कि चाटा माखर दुसाहानेवाला नहीं सोता। जा चारा मारपर दुखी हाता है, वह उतना पर नहा मोगता जितना वह व्यक्ति जागता है जो चांटा मारकर आनदित होता है। चाँटे से आन द रेनवाला व्यक्ति जगली हो जाता है उसका विकास तल नीचे चरा जाता है। उसन गत बीस पच्चीस हजार वपा म जा विकास किया था, वह विकास खो जाता है। ज, तक मनुष्य के क्म और विकास का सम्बध है, मग पहना है कि विकास दो ता पर चर रहा है। मेरा सयार है कि टाविन की खाज गहरी है सही, रविन एक्दम अधूरी है । उसन शरीर के विकास पर सारा सिदान निधारित किया है । चूकि विनान आत्मा को फिक्र नहीं करता, इमरिए बात अधूरी है और आधे सत्य असत्य स भी ज्यादा खतरनार हात हैं । इसया कारण यह है कि आर्य सत्या म पूण मत्य ये हान का भ्रम पदा होता है। यह विकास वा आधा हिस्सा है। इसके दूसरे हिस्से की सात महावीर जसे लगा की दन है। वे कहते है कि चेतना भी विषसित हो रही है। दूसरी बात-जहा चेतना है वहां विकास यातिन नही हो सकता। पसे का चना यानिक है उसके पास न चेतना है आर न इच्छा। यदि उसके पास चेतना हाती तो पखा भी कह सकता था कि आज बहुत सर्दी है, मैं नही चरता। मनुष्य के पास चेतना है इसलिए उसका नि यानरे प्रतिशत विकास सच्छा पर निमर होता है । इमरिए मनुप्य काई पचास हजार वर्षों स ठहर गया है। अब उसम पाइ विक्स रक्षित नहीं होता। निमातम यानि म भी एक मा स्वेच्छा का है जो उम चेतन बनाता है। नहा ता चेतन हान या वाइ अथ नहा । चेतन हाने का अय यही है कि विकास में हम भागीदार है और अपन पतन म स्वय जिम्मदार । चेतना का मतलब यही है rि हमारा दायित्व है हमारी जिम्मेदारी है। पश-पभिया और पेट-पौधो की इच्छा भी उनके विकास म सक्रिय होकर काम कर रही है । पहचानना मुश्किर है। हम से पहचारों वि पशु-पक्षी भी मानव-योनि म प्रवेश कर रह हैं। पइ रास्ते हा सपते हैं, लेकिन सरलतम रास्ता यह है कि मगप्प को पिछले जमा म उतारा जाय । इरास उस इस बात की प्रनीति हो जायगी Hd
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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