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________________ १०४ महावीर : परिचय और वाणी कि वह पिछले जन्मो मे कई बार पगु हुआ था और उसने भी कभी पौधे की जिन्दगी वसर की थी। महावीर ने जातीय स्मरण के गहरे प्रयोग किए थे । जो व्यक्ति उनके निकट जाता, उसे वे पिछले जन्मो मे उतारते और बतलाते कि वह उन जन्मो मे क्या था, और यदि वह पशु था तो अपने किस कर्म के कारण मनुष्य हो सका। ऐसा ज्ञान ऊपर जाने के लिए आवश्यक सोपान हो सकता है। यदि मुझे उस कर्म का ज्ञान हो जाय जिसके कारण मै पशु से मनुप्य बना था तो मै पुन ऐसे ही कर्म करना चाहूंगा जिनसे मै ऊपर उठ सकू।। ___एक रात महावीर के साथ हजारो साधु-सन्यासी एक बडे धर्मशाले मे ठहरे । उनमे एक राजकुमार भी दीक्षित था। धर्मशाले मे पुराने साधुओ को अच्छी जगह मिल गई परन्तु राजकुमार को गलियारे मे सोना पड़ा। जब भी कोई गलियारे से निकलता, उसकी नीद टूट जाती और वह सोचता कि वेहतर है मै लौट जाऊँ, मै जो था, वही ठीक था। सुबह महावीर ने उसे बुलाया और कहा-तुझे पता है कि पिछले जन्म मे तू कौन था? उसने जवाब दिया कि मुझे कुछ पता नही । तब महावीर ने उसके पिछले जन्म की कथा कह सुनाई और बताया कि वह पिछले जन्म मे हाथी था । एक दिन जगल मे आग लगी। सारे पशु-पक्षी भाग चले। हाथी का एक पैर उठा ही था कि एक छोटा-सा खरगोश आ पहुंचा और उसने उसके पैर की शरण ली। खरगोश ने सोचा कि पैर छाया है, वचाव हो जायगा। हाथी भी हिम्मतवर था । उसने देखा कि उसके पैर के नीचे एक खरगोश बैठा है। उसने पर फिर नीचे नही रखा। आग बढती गई और हाथी जलकर राख हो गया। उसने मरते दम तक यही चेष्टा की कि खरगोश किसी तरह वच जाय। उस कृत्य की वजह से वह आदमी बना । अन्त मे महावीर ने कहा-आज तू इतना कमजोर है कि गलियारे मे सोने की वजह से भागने का विचार करने लगा ? पिछले जन्म की कथा सुनते ही राजकुमार के लिए मानो सव-कुछ बदल गया । भयभीत होने और पलायन करने की बात खत्म हो गई । अव वह अपने दृढ सकल्प पर खडा हो गया। उसे एक नई भूमि मिल गई। दूसरा रास्ता बहुत कठिन है। वह यह है कि हम वीस पशुओ के निकट रहे और उनसे अपना आन्तरिक सम्बन्ध स्थापित करे । हमे पता चलेगा कि उनमे भी कुछ अच्छे और कुछ बुरे है। यहाँ तक कि सडको पर दिखाई पड़ने वाले कुत्ते भी सब एक-जैसे नहीं होते । उनका अपना-अपना व्यक्तित्व होता है। और, स्मरण रहे, उनका भी विकास स्वेच्छा से हो रहा है। यही कारण है कि सारे प्राणी विकसित नही हो पाते । जो श्रम करते है वे विकसित हो पाते है। जो श्रम नही करते वे उसी योनि मे पुनरुक्ति करते रहते है । अनन्त पुनरुक्तियाँ भी हो सकता है। लेकिन कभीन-कभी वह क्षण भी आ जाता है जब पुनरुक्ति उबा देती है और ऊपर उठने की आकाक्षा पैदा हो जाती है।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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