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________________ १०० महावीर : परिचय और वाणी पीछे ही नहीं। धर्म कहना है कि मरते वक्त आदमी की ऐनी स्थितियां हो सकती है कि वह खुद आँख न चाहे या उनके कर्मों का पूरा योग हो सकता है उस क्षण मे fआँख सम्भव न रहे । जब ऐसे आदमी की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा उनी मॉवाप के शरीर में प्रवेश करती है जिसमे अवे होने के सभी गयोग जुड़ गए हो। __ अव प्रश्न उठता है कि जब आत्मा उसी माँ-बाप के गरीर मे प्रवेश करती है जिसमे उसके लिए अघे होने के सयोग जुड़े है तो क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि कों के फल दूसरे जन्म तक जाते है ? ____मेरा कहना है कि एक जन्म से दूसरे जन्म में कर्म के फल नहीं जाते। लेकिन जो कर्म और फल हमने किए और भोगे, उनकी एक सूखी रेखा हमारे साथ रह जाती है। उस सूखी रेसा को मै सस्कार कहता हूँ। कर्मों के फल दूसरे जन्म तक नही जाते। यदि मैंने पिछले जन्म मे गाली दी थी तो फल उसी जन्म मे भोग लिया था, फिर भी मैं उस व्यक्ति से भिन्न हूँ जिसने गाली नही दी थी। मेरे पास एक मूखी रेसा है, गाली देने और गाली का फल भोगने की। इस जन्म मे मेरे नाथ सम्भावना है कि कोई गाली दे तो मैं फिर गाली दूं, क्योकि वह मूखी रेखा जो है । न्यूनतम प्रतिरोध की वजह से मैं उमे फौरन पकड लूंगा। हमने जो किया और भोगा है, उसने हमे एक खास परिस्थिति दी है, एक खास संस्कारबद्धता को जन्म दिया है । वही सस्कारबद्धता हमे खास मार्गों पर प्रवाहित करती है। वे खास मार्ग सव रूपो मे कारण से बंधे होगे। इसे एक उदाहरण से समझे । जैसे, यदि कोई आग में हाथ डालता है तो उसे उसी वक्त जलना पडता है। लेकिन मेरा कहना है कि यह आदमी आग मे हाय डालने की प्रवृत्तिवाला है। दूसरे जन्म मे भी इससे डर है कि कही यह आग मे हाथ न डाल दे। आग मे बार-बार हाथ डालने की इसकी आदत भय पैदा करती है। फिर भी इसका यह मतलब नहीं कि यह आदमी आग मे हाथ डालने को बंधा है। यह चाहे तो न डाले । इसका मतलब यह हुआ कि कर्मों की निर्जरा नही करनी है आपको। कर्मों की निर्जरा हर कर्म के साथ होती चली जाती है। पीछे सूखी रेसा रह जाती है । इस सूखी रेखा से आपको ज्ञान हो जाना काफी है। इमलिए मोक्ष या निर्वाण तत्काल हो सकता है, पुरानी धारणों के अनुसार वह तत्काल नहीं हो सकता, क्योकि आपने जितने कर्म किए है उनके फल आपको भोगने ही पडेगे। जब आप सारे फल भोग लेगे तभी आपकी मुक्ति हो सकती है। और यदि इन फलो को भोगने मे आपने फिर कुछ कर्म कर लिये तो आप फिर बँध जायेंगे। इस शृखला का कभी अन्त न होगा। यदि पुरानी व्याख्या सही है तो कोई कभी मुक्त हो ही नहीं सकता। कारण कि कल मैंने जितने पाप किए, जितनी बुराइयाँ की, उनका फल भोगना अनिवार्य है। किन्तु, उनका फल कैसे भोगूंगा? जव कोई मुझे गाली देगा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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