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________________ महावीर परिचय और वाणी का बुनियादी आधार यह है कि अकारण कुछ भी नहीं होता । दूसरावुनियादी आधार यह * वि जा हम कर रहे हैं वही भोग रहे हैं और उसम जमा के फासले नहीं हैं। हम जानना चाहिए कि हम जो भोग रहे हैं उमके लिए हमने कुछ उपाय किया है, चाह मुग्व हो या दुस, चाहे शाति हो या अशान्ति । मरी मा यता है कि राटरी भी मिसी का अकारण नहीं मिलती। हो सकता है कि जिम श्यक्ति की इच्छा शक्ति सबसे अधिक प्रबल हो उसे ही लॉटरी मिर । इच्छा शक्ति पर हजारा प्रयोग किए गए और यह निर्णीत हो गया है कि भीतरना सकल्प पांस तक का प्रभावित करता है, ताश के पत्तो तक को प्रभावित करता है। यह भी आकस्मिक नहीं है कि किसी व्यक्ति को भीतरी सकरप मिल जाता है और निमी को नहा । भीतरी सकरप भी उसके उन हजारो अनुभवा या फल होता है जिनमे वह गुारा है। प्रश्न उठता है कि क्या ऐसा नहीं कहा जा सकता कि किसी एक "यक्ति को सॉरी मिलनी है, इसलिए उसे मिल गई? नही यति लाटरी या मिलना निपट सयोग है तो उसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन ऐस भी लोग हैं जा यता दगे पिलाटरी विमका मिलेगी। हिटलर की मृत्यु यो बतानेवाल लोग थे। चान मारत पर क्सि दिन हमला करगा, इसकी भी भविष्यवाणी की गई थी। मरे कहा का तात्पय यह है कि सयाग जैसी कोई चीज नही है। यहा तर हि हिरोशिमा मे ना रास व्यक्तिया का एक साथ मरना भी सयाग नही है। हिरोशिमा म दो राप यक्तिया का मरना आकस्मिय दोसता है क्यानि इन दो सास पक्षियो भातर हमारा पाइ प्रवेश नहीं है । तीन पूछा जा सरना है कि अगु बम हिरोशिमा पर ही क्या गिरा? हिरोशिमा काइ महत्त्वपूर्ण नगर न था। टापियो पर गिर सरता था पर नागासाकी पर क्यो गिरा? जर तक हम इनके पारणा के भीतर--हिरो गिमा व लोगा के भीतर--प्रवेश नहीं करत तब तक हमार लिए कुछ कहना सम्मान होगा। हो सकता है कि हिराशिमा म हो जापान के सवम ज्यादा जात्मघातच्छक रोग रहे हा और उ हाने ही अण वम का आरपित किया हो। यह जाना का शिनासा भी बहुत म्यामाविर है गिजा बच्चे अगहीन अधे या अम्बम्प पना होते हैं, इराम उनका क्या कसूर? उहान कौन सा कम दिया है जिमयी वाह से व वप्ट भागत है ? इसके उत्तर म वगानिा पगा मि मां-बाप में जिन मणुआ से बच्च या ज म हुमा उनम अधपन की गुजाइश थी, उनम पार रामा यनिर कमी या जिस कारण आँख नहीं पा पा । धामिय पति या उत्तर कुछ और होगा। उमपी दष्टि म पता होने के पीछे भी वारण है कि अग हान र
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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