SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया विरोध होगा। गालियां पड़ेंगी। अपमान होगा। मगर भीतर तुम्हारे शांति होगी, आनंद होगा, उत्सव होगा। भीतर तुम्हारे परमात्मा के साथ मिलन चलता रहेगा।। परमात्मा से मिलना है, तो समाज की चिंता न करना। और समाज की चिंता करना है, तो फिर परमात्मा की बात ही उठाना उचित नहीं है। दूसरा प्रश्नः भगवान, मेरे माता-पिता तुहाडी शरण आए हैं--मैंनूं मिलण दे बहाने। सदगुरु साहिब, किरपा करो कि इन्हीं , वी तुहाडा रंग लग जाए। संत महाराज! जल्दी न करो। लगेगा। मगर जल्दी की, तो गड़बड़ हो सकती है। संत की इच्छा तो प्यारी है, क्योंकि कौन अपने मां-बाप को वह आनंद न देना चाहेगा, जो उसे स्वयं मिल रहा हो! तुम चाहोगे कि तुम्हारे मां-बाप भी इस मस्ती के आलम में इब जाएं। अब आ गए हैं इस महफिल में, तो कहीं खाली न चले जाएं! किसी बहाने आ गए। तुम्हीं को मिलने के बहाने आ गए, क्या फर्क पड़ता है! कोई बहाना चाहिए आने के लिए। आ गए--यह बहुत। और तुम्हारे माता-पिता सीधे-सादे आदमी हैं। सरल आदमी हैं। लेकिन सरलता की एक झंझट है, और वह झंझट यह है कि सरलता अतीत के साथ बंधी होती है; परंपरा के साथ बंधी होती है। सरलता आज्ञाकारी होती है। तो वे भी स्वभावतः एक रंग में ढले हैं। मेरा रंग थोड़ी बगावत चाहता है; थोड़ा विद्रोह चाहता है। संन्यास है ही विद्रोह समाज से। यह समाज का त्याग नहीं है--यह समाज से विद्रोह है। यह समाज से भाग जाना नहीं है--समाज में जीना है और क्रांति के रंग को ले कर जीना है। लेकिन सरलता का एक लाभ भी है कि अगर वे यहां आ गए हैं, तो जरूर मेरी बात उन तक पहुंच जाएगी; उतर जाएगी उनके हृदय में। मगर तुम जल्दी मत करना। तुम जल्दी किए, तो वे बंद हो जाएंगे। तुमने कोशिश की, तो कठिनाई हो जाएगी। कभी भूल कर भी कोई कोशिश न करे कि संन्यासी बन जाए--मेरा पिता, मेरी मां, मेरी पत्नी, मेरा बेटा, मेरी बेटी। कोई कोशिश न करे। क्योंकि तुम्हारी कोशिश जबर्दस्ती मालूम पड़ेगी। तुम तो प्यार से कर रहे हो। तुम तो बांटना चाहते हो। तुम्हारी नीयत तो ठीक। तुम्हारा भाव तो सुंदर। लेकिन दूसरे की स्वतंत्रता पर भी खयाल रखना। मेरा रंग जबर्दस्ती नहीं थोपा जा सकता। यह तो फिर वही भूल हो जाएगी! समझ में आएगी उनके बात। उनके बात, समझ में आनी शुरू हुई है। और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे दो घटनाएं घटती हैं। एक तो यह कि बदलना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि लगता है आदमी को कि अब इतनी जिंदगी तो एक ढंग से जी लिए, अब कैसे बदलें! आदतें मजबूत हो गई होती हैं। Page 90 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy