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________________ ज्यों था त्यों ठहराया पांच तुमने कभी उठाए नहीं धक्कम धुक्की में आ गए। भीड़भाड़ चल रही थी, तुम भी चले आए। मंजिल का पता मालूम नहीं, रहबर भी नहीं, साथी भी नहीं जब रह गई मंजिल चार कदम, हम पांव उठाना भूल गए ! उधार जीना पाखंड है। उदघोषणा करो अपनी निजता की परमात्मा तुम्हारे भीतर भी है उतना, जितना कृष्ण के भीतर था। तुम्हारे भीतर से भी श्रीमद भगवत गीता पैदा हो सकती है। होनी चाहिए। वह झरने का स्रोत तुम्हारे भीतर भी है। तुम्हारे भीतर से भी बुद्धत्व की ज्योति जल सकती है। तुम उतने ही सक्षम हो, जितने सिद्धार्थ गौतम तुम्हारी क्षमता कम नहीं। - परमात्मा किसी को कम और ज्यादा दे कर नहीं भेजता सबको बराबर संभावना देता है। फिर हमारे ऊपर है हम उस संभावना को वास्तविक बनाते हैं या नहीं। और जो आदमी और कुछ होने की कोशिश में लगा है, किसी दूसरे की नकल में पड़ा है, वह कभी स्वयं तो हो नहीं पाएगा; और दूसरा हो नहीं सकता। विबूचन में पड़ा रह जाएगा। विडंबना में उलझा रह जाएगा उसका जीवन सुलझेगा नहीं उलझन ही उलझन से भर जाएगा उसका जीवन एक पहेली हो जाएगा कांटे ही कांटे फूल उसमें नहीं खिलेंगे। जरा सोचो, अगर गुलाब जुही होना चाहे, तो बस पागल हो जाए ! गुलाब भी न हो सकेगा, जुही भी न हो सकेगा। गुलाब को गुलाब ही होना है। जुही को जुही होना है। जुही जुही हो कर अर्पित होगी परमात्मा को । गुलाब गुलाब हो कर अर्पित होगा परमात्मा को। न तो गुलाब का शास्ख जुही के लिए लागू हो सकता और न जुही का आदेश गुलाब के लिए लागू हो सकता। अपनी अद्वितीयता पहचानो । इसलिए मेरे संन्यासी का रजनीकांत, विरोध होगा, क्योंकि मैं कुछ बात कह रहा हूं, जो परंपरा की नहीं है; जो परंपरा-मुक्त है। मैं तुम्हें स्वतंत्रता का पाठ दे रहा हूं--और स्वतंत्रता के पक्ष में कोई भी नहीं है। हम सदियों से गुलाम है हम पहले आध्यात्मिक रूप से गुलाम हुए, इसीलिए हम राजनीतिक रूप से गुलाम हुए। हमारी राजनीतिक गुलामी हमारी आध्यात्मिक गुलामी का तार्किक निष्कर्ष थी। और हम अभी भी गुलाम हैं आध्यात्मिक रूप से। इसलिए हम किसी भी दिन राजनीतिक रूप से गुलाम बनाए जा सकते हैं; इसमें कुछ अड़चन नहीं है। । हमें स्वतंत्रता का पाठ ही भूल गया; हम भाषा ही भूल गए। और पंडित-पुरोहितों ने तुम्हारे जीवन को विषाक्त कर दिया है मैं चाहता हूँ मुक्त हो जाओ उन सबसे छोटी-सी जिंदगी है, इतना कर लो कि अपने भीतर ध्यान जल जाए, ध्यान की ज्योति उठ आए, शेष अब अपने आप हो जाएगा। फिर कितना ही कष्ट झेलना पड़े, हर कष्ट एक चुनौती होगी और हर कष्ट तुम्हारे लिए एक विकास का अवसर होगा, एक मौका होगा। Page 89 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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