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________________ ज्यों था त्यों ठहराया एक मां अपने बेटे को समझा रही थी कि बेटा, आदमी तो मिट्टी है। मिट्टी से आया-- मिट्टी में जाता। दूसरे दिन बेटा भागा हुआ आया। उसने कहा कि मां, जल्दी आओ। उसने कहा, क्या काम ऐसा जल्दी आ पड़ा? उसने कहा, जल्दी आ। बिस्तर के नीचे या तो कोई आ रहा है या कोई जा रहा है! मिट्टी पड़ी थी। और मां ने कहा था कि मिट्टी में से ही हम आते हैं, और मिट्टी में ही जाते हैं! तो बेटा बेचारा समझा कि ठीक है। या तो कोई आ रहा है या कोई जा रहा है! कुछ गड़बड़ हो रही है--बिस्तर के नीचे--मेरे ही बिस्तर के नीचे हो रही है। अपनी आंखों से देखा! राजनेता भी यूं चलता है कि तुम पहचान न पाओ--उत्तर जा रहा कि दक्षिण जा रहा, कि पूरब जा रहा कि पश्चिम जा रहा! जिन लोगों ने भगवान के चतुर्मुखी होने की कल्पना की है, बड़े होशियार रहे होंगे। चारों मुख! राजनेता के इतने ही होते हैं। चारों दिशाओं में! तुम पहचान ही नहीं सकते कि पूरब जा रहे हो, कि पश्चिम जा रहे, कि दक्षिण जा रहे कि उत्तर जा रहे! कहीं से आ रहे कि जा रहे-कुछ पक्का नहीं। देख लेता है कि जो काम की बात हो; जो जिस समय काम आ जाए-- वही बोलने लगता है, वही कहने लगता है, वैसा ही करने लगता है! मैं ढेर राजनेताओं को जानता हूं, जो चरखा रखे बैठे रहते हैं! कभी कातते-वातते नहीं। बस, कोई मिलने आया--कि जल्दी से चरखा कातने लगे! एक राजनेता के घर मैं मेहमान था। मैं बड़ा हैरान हुआ, क्योंकि अब मुझसे कब तक धोखा देते! मैं घर में ही था। सो चरखा चले ही नहीं उनका! और जब भी कोई बाहर से आए, तत्क्षण वे अपना चरखा ठीक करने लगे। धागा निकालने लगें! मैंने उनसे पूछा, यह मामला क्या है? ऐसे कब तक आप कात पाओगे सूत! क्योंकि वह आदमी आ जाता है, तो आप फिर रख देते हो कि अब वह आदमी आ गया। और आदमी जब दरवाजे के भीतर आता है, तभी आप धागा उठाते हो। ऐसे कब तक सूत कतेगा? उसने कहा, सूत कातना किसको है! अरे, इन मूों को दिखलाना पड़ता है। और सूत कातना क्या मुझे आता है--टूट टूट जाता है। मगर होशियार राजनेता छोटे-छोटे चर्खे बनाकर रखे हुए हैं! हवाई जहाज में भी ले कर चलते हैं। काम के कुछ नहीं हैं वे चरखे। खादी तो वे खरीदते हैं--महीन से महीन कि ढाका की मलमल मात हो। वह कुछ खुद की काती हुई खादी नहीं है। शुद्ध हो, यह भी जरूरी नहीं है। जहां-जहां तुम देखो कि यह शुद्ध खादी भंडार--समझ लेना कि अशुद्ध खादी बिकती है। नहीं तो शुद्ध किसलिए लिखा है? तुम जानते हो कि जहां-जहां लिखा होता है शुद्ध घी की मिठाई बिकती है, पक्का समझ लेना कि अशुद्ध घी की बिकती है। जब शुद्ध ही घी की बिकती थी, तो कहीं कोई तख्ती नहीं लगी होती थी: शुद्ध घी की मिठाई बिकती है! वह तो अशुद्ध जब शुरू होता है, तो शुद्ध की भाषा शुरू हो जाती है। Page 83 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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