SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया इसी तरह के तोते तो तुम्हारे मंदिरों में, मस्जिदों में, गुरुद्वारों में बैठे हैं। इसी तरह के तोते तो तुम पूज रहे हो। यही तोते तो तुम्हारे पंडित हैं। ये दोहराए चले जा रहे हैं। इनका अपना कोई अनुभव नहीं है। जिनका अपना अनुभव है, वे भी जब कहने जाते हैं, तो बात बिगड़ जाती है; बन ही नहीं पाती। हजार बार कही गई, और हजार बार बिगड़ गई। रवींद्रनाथ मरणशैया पर थे। उनके एक मित्र ने उनसे कहा कि आप धन्यभागी हैं। आपको तो दुखी नहीं मरना चाहिए! क्योंकि रवींद्रनाथ की आंखों से आंसू झर रहे थे। मित्र ने कहा, मैं तो सोचता था कि तुम तो कृतकृत्य हो गए। तुमने छह हजार गीत गाए! दुनिया के किसी कवि ने इतने गीत नहीं गाए। कालिदास और भवभूति, और शेक्सपीयर और शेली--सब पीछे पड़ गए। शेली ने दो हजार गीत गाए हैं। वह पश्चिम का सबसे बड़ा कवि है--संख्या की दृष्टि से-- महाकवि है। रवींद्रनाथ ने उसी कोटि के छह हजार गीत गाए हैं, जो सब संगीत में बंध सकते हैं; जो छंद-मात्रा में आबद्ध हो सकते हैं, जो गीत से, शब्द से रूपांतरित हो कर संगीत बन सकते हैं। इतना विराट दान तुमने जगत को दिया। तुम धन्यभागी हो, मित्र ने कहा, तुम किसलिए रो रहे हो! रवींद्रनाथ ने कहा, ठहरो, तुम मेरी बात समझे नहीं। मैं इसलिए रो रहा हूं: मैं प्रार्थना कर रहा हूं कि हे प्रभु, अभी तो साज बिठा पाया था। अभी गीत गाया कहां! और यह विदा का क्षण आ गया! यह कोई बात हुई! यह कैसा अन्याय? जिंदगी भर तो मैं साज बिठाता रहा...। साज बिठाना जानते हो न! जब तबलची ले कर अपनी हथौड़ी और तबले को ठोंक-ठोंक कर साज बिठा रहा होता है। जब सितारवादक तारों को कस-कस कर उस जगह ला रहा होता है, उस स्वर में, जो न तो बहुत तना हो, न बहुत ढीला हो। क्योंकि तार बहुत ढीले हों, तो संगीत पैदा नहीं होता। और तार बहुत खिंचे हों, तो तार टूट ही जाएंगे; संगीत क्या पैदा होगा--विसंगीत पैदा होगा। तारों को लाना पड़ता है उस मध्य में--बुद्ध ने कहा है: मज्झिम निकाय--उस ठीक मध्य बिंदु पर, जहां न तो तार बहुत कसे होते हैं, न बहुत ढीले होते हैं। न कसे, न ढीले--जहां कसना और ढीला होना दोनों का अतिक्रमण हो जाता है। तार जब परिपूर्ण स्वस्थ होते हैं--न यह अति, न वह अति, जब पेंइलम घड़ी का बीच में रुक गया होता है, तो घड़ी रुक जाती है। ऐसे ही जब तार बिलकुल मध्य में हो जाते हैं, तब संभावना है संगीत के जन्म की। रवींद्रनाथ ने कहा कि मैं तो अभी सितार के तार बिठा पाया था। तबले को ठोंक-ठोंक कर रास्ते पर लाया था बामुश्किल! ये छह हजार गीत उस गीत को गाने की कोशिश में गाए हैं-- जो अब तक मैं गा नहीं पाया। ये छह हजार असफलताएं हैं। ये छह हजार असफल प्रयास हैं। एक गीत गाना चाहता हूं। बस, एक गीत। मगर जब भी गाता हूं, कुछ का कुछ हो जाता है! Page 8 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy