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________________ ज्यों था त्यों ठहराया तुम गए जीत मैं गई हार ! वीणा भारती! प्रेम के रास्ते पर हार जाना जीत जाना है। प्रेम के रास्ते पर जिसने जीतने की कोशिश की, वह हारा। बुरी तरह हारा! प्रेम के रास्ते पर जो हारने को राजी हुआ, वह जीता। यह प्रेम का विरोधाभास है यह प्रेम का तर्क बड़ा बेबूझ है है! Page 59 of 255 साधारण बाहर के जगत में जो जीतने की कोशिश करता है, वह हारता है। जो जीतता है, वह जीतता है। इस भीतर के हारता है, वह जीतता है। जो जीतता है, वह हार जाता है। जिसने अहंकार रख दिया एक तरफ...। पहले तो लगता है: हार गया। हारता है कोई, तभी अहंकार रखता है। थक जाता है। तू कहती है: हर ओर सुनाती अपना स्वर...। वह अपना स्वर जो था अपना वह जो मैं का भाव, वही बाधा तो फिर तू सुनाती फिर अपना स्वर जब तक सुनाएगी, तब तक तू मुझे न देख पाएगी। हर ओर सुनाती अपना स्वर वह अपनापन पीछे छिपा रहेगा, तो बड़ी सूक्ष्म दीवाल बनी रहती है तो तू कहती है, मैं ट्रं तुमको किधर किधर फिरा तू किधर किधर भी ढूंढ नहीं पाएगी, क्योंकि मैं इधर हूं- किधर किधर नहीं इधर देखा और इधर देखना हो, तो चुप हो, अपना स्वर बंद कर । / अब कहती है, पाया न देख बैठी थक कर ! उस घड़ी ही पाया जाता है, जब कोई थक कर बैठ जाता है। जब तक देखने की आकांक्षा भी बनी रहती है, रहता है। देखने की आकांक्षा भी आकांक्षा है। लोग कहते, परमात्मा को पाना है। यह भी तृष्णा है, यह भी वासना है। इसलिए तो बुद्ध ने कहा, छोड़ो परमात्मा को है ही नहीं परमात्मा इसीलिए कहा कि है ही नहीं परमात्मा, क्योंकि जब तक है, तब तक तुम तृष्णा करोगे; तब तक तुम्हारे मन में आकांक्षा जगेगी--सुगबुगाएगी। बुद्ध ने तोड़ ही दी जड़ से बात। है ही नहीं - क्या खोज रहे हो - - खाक ? छोड़ो। बैठ जाओ। आंख बंद करो । जब तक दीदार की तमन्ना है, तब तक आंखें खोले देखोगे - किधर - किधर सब तरफ खोजोगे और वह भीतर विराजमान है वह इधर विराजमान है और तुम उधर देखो, तो कैसे पाओगे? आंखें तो बाहर देखती हैं। आंखे भीतर नहीं देख सकतीं। आंखें बनी बाहर को देखने के लिए हैं आंखों का प्रयोजन बाहर है। मुल्ला नसरुद्दीन एक रात एकदम अपनी पत्नी को झकझोरा और कहा, मेरा चश्मा ले आ जल्दी कर पत्नी ने कहा, आधी रात चश्मे का क्या करना है? पत्नियां भी कुछ ऐसे मान तो लेती नहीं जल्दी से ! और आधी उसकी नींद खराब कर दी। यह प्रेम का गणित बड़ा उलटा -- वह जीतता है। जो हारता है, लोक में, इस परलोक में जो तब तक आंखों में धुआं समाया दीदार करना है परमात्मा का । http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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